किसी का व्यक्तिगत् सच कितना बेबाब हो सकता है और अगर ब्लॉगिंग का मकसद अपने आपको अभिव्यक्त करना है तो हमें शमा का ब्लॉग देखना ही चाहिये। अभी तक के लगभग सवा पांच हजार हिन्दी ब्लॉगों में शमा एक अकेली ब्लॉगर है जिनको पढ़कर ब्लॉगिंग करने का मकसद समझा जा सकता है। ब्लॉगिंग पर एक समीक्षात्मक लेख लिखते हुए अनुप शुक्ला जी ने कहा था- कि ऐसे बहुत सारे ब्लॉगर है, जो नेटवकिर्ग के अभाव के चलते उतने सामने नही आ पाये हैं जितना अच्छा उनका लेखन है। इनमें से एक नाम शमा जी का है। उनके घर-परिवार के सदस्यों से जुड़े संस्मरण पढ़कर उनके लेखन की ईमानदारी और परिपक्वता का पता चलता है।
जब पहली बार मैने शमा के ब्लॉग ( The Light by a Lonely Path) को देखा था। तब मैंने उसके कटैंट को नहीं देखा बल्कि उनकी तस्वीर को देखकर प्रभावित हुआ था। अगर महिला ब्लॉगरों की कोई सौन्दर्य प्रतियोगिता रखी जाए तो शमा इसके लिये एक वजनदार नाम है। वह बेहद बिदांस नजर आती है लेकिन गम्भीरता का टच लिये हुए। शमा मुलतः एक अग्रेजी लेखिका है जो हिन्दी में अपना ब्लॉग चलती है और पुणे में रहती है। ''एक बार फिर दुविधा'' नाम से वह आजकल एक श्रृंखला लिख रही है जो उनकी अपनी आपबीती है। इस आपबीती में जो सच्चाई है वह बड़ी बात नही है बल्कि ऐसी सच्चाई कहने का साहस बड़ी बात है। शमा ने अपने व्यक्तिगत् जीवन के ऐसे पहलूओं को अभिव्यक्त किया है जिन्हें कहने के लिये किसी महिला के पास विशेष हृदय होना चाहिये।
चर्चित ब्लॉगर नीरज गोस्वामी जी ने शमा के लेखों पर एक बार कहा था कि ''आप की पोस्ट पढ़ना एक दर्द से रूबरू होने जैसा है।'' यह बात बिल्कुल सच है। दर्द की क्या कैफीयत होती है और ये किन-किन किस्मों में बंया हो सकता है, शमा इस फन को बखूबी जानती है। उन्होने अपनी जिन्दगी से जुड़े सभी पहलूओं पर बात की है। एक मुस्लिम घर की लड़की का एक हिन्दू परिवेश में आना और जिन्दगी की दूसरी मुसीबतों का सामना करते हुए अन्य दायित्वों का निर्वाह करना। और यहीं नही अपनी ऊर्जा को समेट कर सार्थक प्रयोगों में लगाना। चाहे वह उनका बागवानी, इंटीरियर या पेटिंग का शौक रहा हो जिसे उन्होने अपनी आजीविका में तब्दील भी किया सबके सामने एक मिसाल पेश करता है। पूर्व में शमा अग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रैस और मिड डे के लिये सप्ताहिक कॉलम लिखती रही हैं। इसके अलावा आकाशवाणी व अन्य प्रसार माध्यमों को अपनी सेवाए देती रही हैं। साथ ही साथ कुछ किताबे भी प्रकाशित हुई।
जब ब्लॉगिंग जनसाधारण की पहुंच में आई तब आपने इसे अपनी आपबीती का मंच बनाया। शमा के ब्लॉग पर अक्सर दो भ्रम पाठकों को हो जाते है। पहला ये की वह कोई कहानी लिख रही है जबकि वह उनकी अपनी आत्मकथा होती है लोग टिप्पणी करते है कि किरदार ऐसे है, वैसे है उनमें ये बदलाव कर देना चाहिये लेकिन वे बाद में समझ पाते है कि हो क्या रहा है। दूसरा बेहद ही असरदार वहम शमा की फोटो को देखकर हो जाता है। क्योंकि उनकी पोस्ट को पढ़ने के बाद सभी उनसे उनके नये फोटो की मांग करने लगते है। वह उनकी कहानी में उस नायिका को देख लेना चाहते है जिसके साथ इतना कुछ घट रहा है। जिन भी लोगों को शमा से बात करने या मिलने की खुशनसीबी हासिल हुई है वह सब जानते है कि वह एक बेहद ही आर्कषक व्यक्तित्व की मालिक है। एक खनकती हुई आवाज अपने मरमरी अल्फाजो में जब आपके कानों में पड़े तब आप समझ लेना कि शमा बोल रही हैं। अक्सर इस प्रकार के प्राणी बालीवुड नामक संस्था में पाये जाते है। मनविन्दर बिंभर एक ऐसी महिला पत्रकार है जो बहुत कम ब्लॉगों को मुंह लगाती है लेकिन वह भी शमा की नई पोस्टों पर जाना नही भूलती है।
अक्सर उनकी एक पोस्ट को पढ़ लेने के बाद आप उनके सारे ब्लॉग को पढ़े बिना नही रह सकते है। द लाइट बाई ए लोनली पाथ पर टिप्पणी करते हुए अखिल तिवारी जी ने कहा कि अभी १ महीने से ही पढ़ना शुरू किया है, पर विश्वास मानिए, आपके ब्लॉग के सभी लेख, पुराने से पुराने लेख पूरी तन्लीनता के साथ पढ़े. ।यह सिर्फ अखिल जी की बात ही नही है बहुत सारे पाठकों का यही हाल होता है। आपका ब्लॉग आज पहली बार ही देखा, एक पोस्ट पढ़ने के बाद इतना बढ़िया लगा कि पिछली दस-बारह पोस्ट भी पढ़ ली, सागर नाहर जबकि मशहूर ब्लॉगर राज भाटिय़ा जी कहना है कि - ऎसा लगता है आप का लेख पढ कर जेसे कोई दोस्त बिलकुल हमारे पास बेठा है, शमा बेहद सवेंदनशील किस्म की ब्लॉगर है जो छल कपट और राजनीतिक धूर्तता वाली ब्लॉगिंग से परे है लेकिन अभी हाल ही में हुए मुम्बई पर आतकंवादी हमले ने उनके पारम्परिक लेखन को प्रभावित किया है। हर किसी ब्लॉगर के लिखने का एक विशेष अंदाज होता है यह फन शमा के ब्लॉग में आपको कुछ अलग ढंग से मिलेगा वह कविता और ठोस लेखन को साथ में जोड़कर लिखती है और लिखने की सच्चाई उनकी आत्मियता से पता चलती है। आपने अभी हाल ही में फिल्म मेकिंग का कोर्स पूरा किया है और कुछ शार्ट फिल्में बनाने की तैयारी में है, जो इस बात को भी दर्शाता है कि कल्पना के पंख अगर आपके पास है तो आसमान बहुत बड़ा है। अगर आप इस बात को नही मानते तो शमा को जानिये।
जब पहली बार मैने शमा के ब्लॉग ( The Light by a Lonely Path) को देखा था। तब मैंने उसके कटैंट को नहीं देखा बल्कि उनकी तस्वीर को देखकर प्रभावित हुआ था। अगर महिला ब्लॉगरों की कोई सौन्दर्य प्रतियोगिता रखी जाए तो शमा इसके लिये एक वजनदार नाम है। वह बेहद बिदांस नजर आती है लेकिन गम्भीरता का टच लिये हुए। शमा मुलतः एक अग्रेजी लेखिका है जो हिन्दी में अपना ब्लॉग चलती है और पुणे में रहती है। ''एक बार फिर दुविधा'' नाम से वह आजकल एक श्रृंखला लिख रही है जो उनकी अपनी आपबीती है। इस आपबीती में जो सच्चाई है वह बड़ी बात नही है बल्कि ऐसी सच्चाई कहने का साहस बड़ी बात है। शमा ने अपने व्यक्तिगत् जीवन के ऐसे पहलूओं को अभिव्यक्त किया है जिन्हें कहने के लिये किसी महिला के पास विशेष हृदय होना चाहिये।
चर्चित ब्लॉगर नीरज गोस्वामी जी ने शमा के लेखों पर एक बार कहा था कि ''आप की पोस्ट पढ़ना एक दर्द से रूबरू होने जैसा है।'' यह बात बिल्कुल सच है। दर्द की क्या कैफीयत होती है और ये किन-किन किस्मों में बंया हो सकता है, शमा इस फन को बखूबी जानती है। उन्होने अपनी जिन्दगी से जुड़े सभी पहलूओं पर बात की है। एक मुस्लिम घर की लड़की का एक हिन्दू परिवेश में आना और जिन्दगी की दूसरी मुसीबतों का सामना करते हुए अन्य दायित्वों का निर्वाह करना। और यहीं नही अपनी ऊर्जा को समेट कर सार्थक प्रयोगों में लगाना। चाहे वह उनका बागवानी, इंटीरियर या पेटिंग का शौक रहा हो जिसे उन्होने अपनी आजीविका में तब्दील भी किया सबके सामने एक मिसाल पेश करता है। पूर्व में शमा अग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रैस और मिड डे के लिये सप्ताहिक कॉलम लिखती रही हैं। इसके अलावा आकाशवाणी व अन्य प्रसार माध्यमों को अपनी सेवाए देती रही हैं। साथ ही साथ कुछ किताबे भी प्रकाशित हुई।
जब ब्लॉगिंग जनसाधारण की पहुंच में आई तब आपने इसे अपनी आपबीती का मंच बनाया। शमा के ब्लॉग पर अक्सर दो भ्रम पाठकों को हो जाते है। पहला ये की वह कोई कहानी लिख रही है जबकि वह उनकी अपनी आत्मकथा होती है लोग टिप्पणी करते है कि किरदार ऐसे है, वैसे है उनमें ये बदलाव कर देना चाहिये लेकिन वे बाद में समझ पाते है कि हो क्या रहा है। दूसरा बेहद ही असरदार वहम शमा की फोटो को देखकर हो जाता है। क्योंकि उनकी पोस्ट को पढ़ने के बाद सभी उनसे उनके नये फोटो की मांग करने लगते है। वह उनकी कहानी में उस नायिका को देख लेना चाहते है जिसके साथ इतना कुछ घट रहा है। जिन भी लोगों को शमा से बात करने या मिलने की खुशनसीबी हासिल हुई है वह सब जानते है कि वह एक बेहद ही आर्कषक व्यक्तित्व की मालिक है। एक खनकती हुई आवाज अपने मरमरी अल्फाजो में जब आपके कानों में पड़े तब आप समझ लेना कि शमा बोल रही हैं। अक्सर इस प्रकार के प्राणी बालीवुड नामक संस्था में पाये जाते है। मनविन्दर बिंभर एक ऐसी महिला पत्रकार है जो बहुत कम ब्लॉगों को मुंह लगाती है लेकिन वह भी शमा की नई पोस्टों पर जाना नही भूलती है।
अक्सर उनकी एक पोस्ट को पढ़ लेने के बाद आप उनके सारे ब्लॉग को पढ़े बिना नही रह सकते है। द लाइट बाई ए लोनली पाथ पर टिप्पणी करते हुए अखिल तिवारी जी ने कहा कि अभी १ महीने से ही पढ़ना शुरू किया है, पर विश्वास मानिए, आपके ब्लॉग के सभी लेख, पुराने से पुराने लेख पूरी तन्लीनता के साथ पढ़े. ।यह सिर्फ अखिल जी की बात ही नही है बहुत सारे पाठकों का यही हाल होता है। आपका ब्लॉग आज पहली बार ही देखा, एक पोस्ट पढ़ने के बाद इतना बढ़िया लगा कि पिछली दस-बारह पोस्ट भी पढ़ ली, सागर नाहर जबकि मशहूर ब्लॉगर राज भाटिय़ा जी कहना है कि - ऎसा लगता है आप का लेख पढ कर जेसे कोई दोस्त बिलकुल हमारे पास बेठा है, शमा बेहद सवेंदनशील किस्म की ब्लॉगर है जो छल कपट और राजनीतिक धूर्तता वाली ब्लॉगिंग से परे है लेकिन अभी हाल ही में हुए मुम्बई पर आतकंवादी हमले ने उनके पारम्परिक लेखन को प्रभावित किया है। हर किसी ब्लॉगर के लिखने का एक विशेष अंदाज होता है यह फन शमा के ब्लॉग में आपको कुछ अलग ढंग से मिलेगा वह कविता और ठोस लेखन को साथ में जोड़कर लिखती है और लिखने की सच्चाई उनकी आत्मियता से पता चलती है। आपने अभी हाल ही में फिल्म मेकिंग का कोर्स पूरा किया है और कुछ शार्ट फिल्में बनाने की तैयारी में है, जो इस बात को भी दर्शाता है कि कल्पना के पंख अगर आपके पास है तो आसमान बहुत बड़ा है। अगर आप इस बात को नही मानते तो शमा को जानिये।