अपनी वर्जीनिटी खो देना एक मामूली बात है

कल रात नेशनल ज्योग्राफिक चैनल पर एक कार्यक्रम देख रहा था द लार्ज प्लेन क्रेश इसमें दिखा रहे थे कि ऐवीऐशन कैरियर कितना जोखिमों भरा है किसी पायलट के उपर प्लेन उड़ाते हुए कितनी बड़ी जिम्मेदारी होती है। एक जरा सी चूक बड़े हादसे का कारण बन सकती है। यहां केवल उन्ही लोगो को रखा जाता है जो इसके लिये डिसर्व करते है, और इतनी बड़ी जिम्मेदारी उठाने का साहस, समझदारी, योग्यता जिनमें होती है। इस इण्डस्ट्री के लिये योग्य पात्रों का चयन बेहद ही फिल्टर प्रक्रियाओं के बाद ही हो पाता है। एक-एक अभ्यर्थी हिरे के सामान होता है। चुनाव बेहद ही योग्य लोगो का हो पाता हैं। कुल मिलाकर यह एक शानदार प्रक्रिया है जो जरूरी भी है।
अब बात करते है निजी स्वार्थ की खातिर किस तरह से इस बेहद जिम्मदारी वाले काम को ग्लैमर से जोड़कर वास्तविकताओं से मुहं मोड़ लिया गया है, और धोखाधड़ी करने के नये तरिको को अपनाया गया है। मेरठ कोई खास बड़ा शहर नही है और न ही अभी मैट्रो सिटी होने की रह पर चला है। लेकिन अय्याशीयों और जिस्मफरोशीयों के नये-नये तरिको को परोसने वाली दुकाने ऐवीऐशन इण्डस्ट्री की आड़ में कैरीयर बनाने के नाम पर अपनी दुकाने चला रही है।
यहां ऐवीऐशन फिल्ड में कैरीयर बनाने के नाम पर बहुत सारे छोटे बड़े इस्टटीयूट खुल गये है जो लड़के-लड़कियों का दाखिला मोटी फीस वसूल करके कर रहे हैं। यहां ये लोग छात्रों को नये नये सपने दिखाते है और पूरे साल के पाठय्‌क्रम में उन्हें केवल सजना सवंरना ही सिखाते है कि आप अपने व्यक्तित्व को आर्कषक बनाओ, बेहद चमकिला बनाओं अगर कोई आपको देखे तो बस देखता ही रह जाये। इन सस्थानों में छात्रों को फ्लाइंग स्टूअर्ट, होस्ट मैनजमेन्ट, पब्लिक रिलेशन जैसी पोस्ट के लिये तैयार करते है। जिसका पूरा पाठय्‌क्रम केवल भाषा, व्यक्तित्व, आवरण, तौर-तरीके पर ही सिमट कर रह जाता है। अब चूंकी बच्चे एक-एक लाख, अस्सी हजार, सत्तर हजार रूपया खर्च करके ये कोर्स करते है (ये फिस किसी नामी संस्थान की हो सकती है लेकिन कोई छोटा-मोटा लोकल संस्थान केवल तीस, चालीस हजार रूपये में भी ये कोर्स करा रहा है) इन संस्थानों का वातावरण बेहद गलैमर्स से भरा होता है यहां बच्चों को फैशन, बनाव सिंगार, तौर-तरीके तो संस्थान सिखाता है
लेकिन बच्चे इस खुले वातावरण में इनसे भी आगे की चार बातें सीखकर अपने जीवन में अपना रहे है। सब नई उमर के लड़के-लड़कियां है जो आपस में एक दूसरे को हर तरह से जान लेते है और सारी वर्जनाए और सीमाए तोड़ देते है। इस तरह के कल्चर को यह संस्थान प्रमोट भी करते है और स्पेस व सुविधाए भी मुहैय्या कराते है। यहां बच्चों का आपसे में एक दूसरे के प्रति शारिरिक सम्बध बना लेना एक आम सी बात है क्योकी इस तरह के बेहद उत्तेजक माहौल में यह एक सामान्य बात है कि बच्चे इस तरह से कर गुजरते हैं। अब इसके बाद आता है अगला पड़ाव। मां-बाप ने बच्चों को महंगी फीस भरकर प्रवेश तो दिला दिया है। लेकिन वहां बाद में क्या हो रहा है यह उन्हें नही पता होता है। लड़कियां जब इस तरह के बनाव सिंगार को सीखती और अपनाती है तो इस काम के लिये भी पैसा चाहिये होता है। जो अब घर से मिलना होता नही है और ना ही वह बता पाती है कि उन्हें किस काम के लिये पैसा चाहिये। लेकिन वह यहां रहकर पैसा कमाने के दूसरे सोत्रों को भलीं-भाती पहचानने लगती है। और इस तरह वह जाने अनजाने अपने आप को दूसरो के सामने पेश करने को भी मामूली बात मान लेती है और यह सब हौसला उनको मिलता है इन्ही संस्थानों से क्योकी यहां की हवा और गुटटी में इन्हें घोल-घोल पिलाया जाता है कि आगे बढ़ने के लिये कुछ भी कर गुजरों आपको एक बड़ा मॉडल, बड़ा व्यक्ति बनना है। इन सबके लिये अपने आपको बेचना मामूली कीमत है।
यह सभी संस्थान हमारी नई पीढ़ी को जिस्मफरोशी के नये नये तरीको से अपने आप को बेचने की कला सिखा रहे है। नई उमर की लड़किया आर्कषण मे फंसकर अपने आपको मामूली चीजो के लिये स्वाहा कर देती है। आज के लड़के-लड़कियों के लिये अपनी वर्जीनिटी को खो देना एक मामूली बात हैं। यह हमें सोचना होगा की तरक्की और विकास को हम क्या कीमत चुकाकर ला रहे है।

अब तुम मुझे पसन्द नहीं

अब तुम मुझे पसन्द नहीं
बुढ़ी हो गई है मेरी सोच
जा चुका है बसन्तउत्सव
जो कभी आया ही नही

रोज के लिये भी नही बचा कुछ
सूख गई मिटटी सभी गमलों की
किसी बीज की प्रतिक्षा में
अब तुम मुझे पसन्द नहीं
बुढ़ी हो गई है मेरी सोच

दिल धड़कता नही मेरा अब
तुम्हे देखकर अचानक अपने सामने
बल्कि दिखाई देते है, तुम्हारे चेहरे के निशान
जो पहले नही थे कभी
मेरा मन भी नही होता
तुमसे बात करने का
अपनी ही खोज में डूबकर मर गया है
शब्दों का वाचाल समन्दर
जिसने तुम्हारे लिये
महाकाव्य लिखने का वादा किया था
मैने जो बुने थे
सपनों के इन्द्रधनुष
उनके रंग अब फिके पड़ गये है

अब तुम्हे भी लौट जाना चाहिए
मेरी प्रतिक्षा किए बिना
बुढ़ी हो गई है मेरी सोच
और जा चुका है बसन्तउत्सव
इरशाद
(मेरे ही एक पूराने नाटक ''वापसी'' में काव्य संवाद, जब नायक मनोहर नायिका गीता को जाने के लिये कहता है)

आप कैसे दिखते है?

हम सदैव किसी न किसी प्रस्तुतिकरण के दौर में रहते है। हर समय हमें बहुत से लोग देख रहे होते है। जब वह हमें देखते है तो हमारे बारे में सोचते है। हमारी छवि का आकलन करने लगते है। यह सब वह होते है जो रोज ही हमसे मिलते है। लेकिन जब हम अन्जान लोगो से मिलते है तब तो वह सबसे पहले अपनी धारणा सिर्फ हमें देखकर बनाते है की सामने वाला व्यक्ति किस प्रकार का है। बातचीत करना अगला कदम होता है और कई बार तो ऐसा होता है कि आप सिर्फ एक ही व्यक्ति से मिलते है या बात करते है अपना असर उसपर छोड़ते है लेकिन बाकी लोग जिन्होने आपसे बात नही की वह भी आपका आकलन करते है कि आप किस तरह के व्यक्ति है। जैसे किसी कम्पनी में आप वहां के मालिक से मिलने जाते है या फिर किसी शादी, समारोह मे जाते है सब से मिल पाना या बात कर पाना मुमकिन नही हो पाता लेकिन वह आपको देख रहे होते है आपके व्यक्तित्व का अंदाजा लगाते है। तो यह भी एक प्रस्तुतिकरण का दौर है जहां आप किसी बात को समझाकर या बताकर अभिव्यक्त नही करते बल्कि आपकी ड्रैस सेन्स, बॉडी लेग्वेज आपको दूसरो के सम्मुख प्रस्तुत कर रही होती है। आप कैसे दिखते है इस बात को समझने के लिये हमें कुछ बातों का खास ध्यान रखना होता है
शरीर की सफाई और स्वच्छता
कपड़े किस तरह के हो
जूते और चप्पलों के प्रकार
आभूषण, घड़ी, कड़ा, कलावा आदि
सबसे पहले बात करते है शरीर की सफाई और स्वच्छता के बारे में हमारे दिखने के सारे प्रकरण में यह सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है आप अपने शरीर की सफाई करते है। आपके हाथ पैर साफ तरह से हो उन पर मैल न चढ़ा हो। हमारे घूटने, कोहनीयां, कमर, गरदन, जाघें आदि सब बिल्कुल साफ तरह हमने धोया है या फिर बस ऐसे औपचारिकतावश हम नहा लेते है तो इसका ध्यान रखें। दूसरी बात जो अक्सर बहुत से लोग ध्यान नही रखते है उनके कान बहुत गन्दे होते होते है। एक बार दिल्ली से घर लौटते हुए मैं बस से सफर कर रहा था। तभी मेरे बराबर में एक बेहद सुन्दर लड़की आकर बैठ गई मैने सोचा चलो रास्ते भर इनसे बातें करते हुए कट जाएगा। थोड़ी देर बाद मैने उस लड़की की तरफ गर्दन मोड़ी तो मुझे उसका कान दिखाई दिया जो बेहद गन्दा और मैल से भरा हुआ दिखाई दे रहा था। मैने फिर दोबारा उसकी तरफ नही देखा। ऐसे ही बहुत सारे लोगो के कान गन्दे होते है। वह उसकी सफाई नही करते है। इसके बाद आता है हमारे नाक की सफाई। नाक हमारे चेहरे का सबसे सुन्दर हिस्सा होती है। नाक की बदौलत ही हम सुन्दर दिखाई देते है। अक्सर पुरूष लोग अपने नाक के बाल ठीक तरह से नही काटते है और वह नाक से बाहर आते हुए दिखाई देते है जो बेहद गन्दे दिखाई देते है हमारे पास एक छोटी कैची होनी चाहिए इसके साथ ही हमारी नाक अन्दर से बिल्कुल साफ होनी चाहिए। महिलाओं और लड़कियो को इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि उनकी नाक साफ है की नही। मेरे आफिस में जो रिसेप्सनिस्ट है वह नाक मे बाली पहनती है उसकी नाक भी गन्दी रहती है और.....। कुछ लोगो को एक गन्दी आदत होती है की वह कही भी अपनी उंगली नाक में चला देते है उन्हे यह गन्दा काम करते हुए शर्म नही आती है यह बात आपको बेहद फूहड़ और पिछड़ा हुआ शो करती है। मैने अक्सर कई बड़े स्टारो को बेहद करीब से देखा और बातचीत की तो पाया ये लोग अपनी चेहरे, कान, नाक आंख की बहुत सफाई रखते है। इसके बाद बात करते है हमारे दांत कैसे दिखते है वह पीले है या क्रिम कलर के है या फिर सफेद मोतीयो से चमकते हुए है इसके साथ ही बहुत जरूरी बात कि आप के मुंह से बदबू तो नही आती है अक्सर बहुत सारे लोगो के मुंह से सड़ी हुई बदबू आती है जो हमारे वजूद को खतरे मे डाल देती है इससे हम लोगो के प्रिय नही बन सकते किसी से किस करना तो बेहद दूर की बात है हा हा हा।
अगर आप इतना ध्यान कर लेगे तो भी हम एक दूसरे के करीब आसानी से आ सकते है आगे आपसे इसी तरह की अन्य पहलूओ पर बात करेगें यह सब बाते और व्याख्यान है जो अलग-अलग समय पर मैने अपनी क्लासों मे दिये है। इसकी एक लम्बी कड़ी है आप लोगो का साथ रहा तो आगे और भी बातें करेगे देखते है आपकी क्या टिप्पणी रही।
इरशाद

संसार तुम्हारी प्रतिक्षा मे है

अपनी अभिव्यक्तियों को अभिव्यक्त किजिए बिना किसी डर, सकोंच और हिचकिचाहट के, ये संसार तुम्हारी प्रतिक्षा मे है। और तुम सिद्ध करो अपना औचित्य कि तुम श्रेष्ठ हो। हमारे मन के किसी कोने में जब किसी कला ने जन्म लिया था और हमने कल्पनाओं के पंखों से उड़कर उसे अपने सुन्दर सपने का नाम दिया था तो वह वक्त अब आ खड़ा हुआ जब हम अपने सपनों को साकार करें।
मैं जब उन लोगों से मिलता हूं जिन्होने अपनी कामयाबी को इज्जत, शौहरत और दौलत में बदला है तो पाता हूं कि कामयाब होने की उनकी अपनी दिली ख्वाहिश थी और इसके साथ ही ऐसा कोई विचार जिसकी बदौलत उन्हे वह सब हासिल हुआ। उन्होने बस शुरुआत की कुछ भी न होते हुए लेकिन अपने रास्तों को खुद बनाया। अपनी मेहनत, हिम्मत और सोच के चलते खूद को दूसरो से अलग साबित किया। और आज सब उनकी बातें करते है।
इरशाद