इसे यूं ही न जाने दो!

बहुत पहले जब फुरसतिया मतलब अनुप जी को पढ़ा था तो सोचा, यार! ये बन्दा क्या कमाल का लेखन हिन्दी ब्लागिंग के लिये कर रहा है। अनुप जी की तरह ही और भी लोग प्योर कटैंट अपने ब्लाग पर उपलब्ध करा रहे है। इनमें चाहे गीत-संगीत हो समीक्षात्मक लेखन या फिर विशलेषात्मक तथ्यों से लबरेज चर्चांए हो।
ऐसे बहुत अच्छा लिखने वालों की हिन्दी ब्लागिंग में एक लम्बी श्रंृखला रही है। मैं यहां किस-किस का नाम लूं जिन्होने अलग-अलग प्रकार के लेखन का सृजन किया और अपने ब्लाग को बनाया तथा पढ़ने वालो को उनके ब्लाग के माध्यम से एक नये तरह के व्यक्तित्व को जानने समझने का मौका मिला। इसी के चलते हिन्दी ब्लागों की लोकप्रियता बढ़ी। ये हम सब जानते है कि हिन्दी ब्लागिग का भविष्य बेहद सम्भावनाओं से भरा हुआ है लेकिन ब्लागिंग के घटिया चलन और भीड़ के कारण जो संड़ाध आज यहां उठ रही है वो ना सिर्फ इसकी लोकप्रियता को घटायेगी बल्कि अच्छा पड़ने वालों को इससे दूर भी करेगी।
हमारा ब्लाग हमारी धरोहर होना चाहिये, हमारे घर की तरह साफ-सुथरा, कलात्मक। आमतौर पर यहां नये लिखने वाले और असाहित्यिक लोग टिप्पणीयों के मोहताज रहते है, छोटे-मोटे टोटके आपको कुछ दिन चर्चां में जरूर रख सकते है लेकिन आपका पाठक वर्ग खड़ा नही कर सकते है।
यहां प्योर ही और दूसरो को सुख और ज्ञान देने वाला कटैंट से भरा हुआ ब्लाग आपको नियमित पढ़ने वालो से जोड़े रख सकता हैं। आपका कटैंट ऐसा हो कि पढ़ने वाला उसे अपनी जरूरत में शामिल कर ले अर्थात कुछ ऐसा लिखिए जो दूसरों की जरूरत बन जाए।
यदि आप छपास की पीड़ा से त्रस्त है तो कृपया अपना मानसिक कूड़ा यहां ना फैलाए। हमारा ब्लाग हमारे लिये एक मौका है जब हम अपना परिचय दूसरों से करा रहे होते है तो दोस्तो हम इसे यूंहीं न जाने दे।