गुलज़ार ने आखिर ऐसा गीत क्यों लिखा होगा

डर लगता है तन्हा सोने में जी, दिल तो बच्चा है जी!
गुलज़ार का लिखा ये गीत अभी हाल ही में रिलीज़ फिल्म इश्किया में हम लोगों ने सुना हैं। आपको क्या लगता है गुलज़ार ने इस तरह के गीत को लिखने से पहले क्या सोचा होगा?
ऐसी उलझी नज़र उनसे हठती नहीं
दांत से रेशमी डोर कटती नहीं
उम्र्र कब की बरस के सुफेद हो गयी
कारी बदरी जवानी की छंटती नहीं
वल्लाह ये धड़कन बढ़ने लगी है
चेहरे की रंगत उड़ने लगी है
डर लगता है तन्हा सोने में जी
दिल तो बच्चा है जी, दिल तो बच्चा है जी
थोड़ा कच्चा है जी
किसको पता था, पहलू में रक़्खा, दिल ऐसा पाजी भी होगा
हम तो हमेशा समझते थे कोई हम जैसा हां जी ही होगा
हाय ज़ोर करे, कितना शोर करे,
बेवजह बातों में ऐवें गौर करे
दिल सा कोई कमीना नहीं
कोई तो रोके, कोई तो टोके
इस उम्र में अब, खाओगें धोखे़
डर लगता है इश्क करने में जी
दिल तो बच्चा है जी, दिल तो बच्चा है जी
थोड़ा कच्चा है जी
हां... दिल तो बच्चा है जी
ऐसी उदासी बैठी है दिल पे
हंसने से घबरा रहे हैं
सारी जवानी कतरा के काटी
बीड़ी में टकरा रहे है
दिल धड़कता है तो, ऐसे लगता है वो
आ रहा है यही, देखता ही ना हो
प्रेम की मारे कटार रे
तौबा ये लम्हें, घटते नही क्यों
आंखों से मेरी, हटते नही क्यों
डर लगता है खुद से कहने में जी
दिल तो बच्चा है जी, दिल तो बच्चा है जी
थोड़ा कच्चा है जी
दिल तो बच्चा है जी