जितेन्द्र चौधरी जैसा सर्मपण कहां से लाए

हिन्दी में ब्लॉगरों की भीड़ बढ़ती ही जा रही है। जिसको पता चल रहा है वो दौड़ा-दौड़ा आ रहा है। लेकिन बीते कल में ये बात न थी। हिन्दी ब्लॉगिंग की नींव में जो पत्थर गड़े हुए है उनमें से ही एक नाम जितेन्द्र चौधरी का आता है। 'बड़े भय्या' के नाम से लोग आपको सम्बोधित करते है, और आपने जो कुछ भी ब्लॉगिंग को माध्यम बनाकर हिन्दी भाषा के लिए किया है वो एक बड़े भय्या ही कर सकते है। बतौर एक सॉफ्टवेअर प्रोफेशनल होने के नाते आपने अपनी क्षमताओं का भरपूर उपयोग हिन्दी ब्लॉगिंग के योगदान के लिए किया है। हम देख रहे है हिन्दी में जो ब्लॉगर आ रहे है वो क्या तो पत्रकार हुए जा रहे है या व्यंगकार बनने का चस्का उनको भा गया है, और इसी चक्कर में सब अपने ब्लॉगिंग फैशन का निर्वाह कर रहे है।
लेकिन जीतू भाई अपने सर्मपण के साथ ब्लॉगिंग करते है, जो कुछ है जैसा है हरदम देने को तैयार और ऐसे ही आपकी दोस्त मण्डली है। हिन्दी ब्लॉगरों की संख्या को दस लाख पर पहुंचा कर ही छोड़ेगे। 'नारद' जैसे ब्लॉग ऐग्रीगेटर का जन्म कैसे हुआ है ये हर किसी ब्लॉगर को जानना चाहिए। तब हमें पता चलेगा कि आज हिन्दी में ब्लॉगिंग करना फूलों की सेज है, लेकिन कल यही काम लोहे के चने चबाने जैसा था। लोग मजे ले रहे है, लेकिन याद रखें राहे इतनी आसान न थी। इनको आसान बनाने में जीतू भाई जैसे और भी बहुत सारे ब्लॉगरों ने निस्वार्थ योगदान दिया है। अब हमने हिन्दी को इंटरनेट की भाषा बनाने की तरफ पहला कदम बढ़ाया है।
आज हम मजे से अपनी पोस्ट लिख कर सो जाते है लेकिन ये लोग कल के लिए नये-नये तरिकों और सुविधाओं को जुटाने की तरफ सोच रहे है। आप सब की जानकारी के लिए बताना उचित समझता हूं कि जीतेन्द चौधरी भी ऐसे हिन्दी ब्लॉगर है जो अपने हिन्दी ब्लॉग से ही पैसा भी कमा रहे है। उनके ब्लॉग पर फरवरी से अप्रैल तक दिखाऐ जाने विज्ञापनो से ही 100 डॉलर तक की आय बन जाती है। भारत में इस दिशा में और भी लोगो ने कदम बढ़ाया और कामयाब भी हुए है।
एक तकनीकी विशेषज्ञ का ब्लॉग रोचक और मनोंरजक भी हो सकता है ये बात जीतू भाई के ब्लॉग 'मेरा पन्ना' पर आसानी से देखी जा सकती है। आपने अपने बारे में बताते हुए अपने प्रोफाइल में एक पूरी किताब ही अपने बारे में लिख दी है। उसको पढ़ने के लिए आपके पास चार-पांच दिन का समय होना चाहिए। आप आजकल दूबई में क्रियाशील है लेकिन आपका जन्म कानपूर में हुआ था, और आपको कानपूर से प्यार दिवानगी की हद तक है। लेकिन दुबई की नफासत में आप इतने रमे हुए है कि कानपूर में धूल से आपको एलर्जी हो जाती है। लड़कियां आपकी सबसे अच्छी दोस्त है, लेकिन क्यो हैं ये शोध का विषय है।
जितेन्द्र जी कुछ मुद्दों पर बहुत भावूक होकर बोलते है कि- ''मेरा अपना विचार है कि हिन्दुस्तान का बँटवारा गलत था,हम जमीन का बँटवारा तो कर सकते है, लेकिन दिलों का, लोगों का और उनके इमोशन्स का बँटवारा नही कर सकते.'' आपको ब्लॉग लिखने के लिए कभी ड्राफ्ट का प्रयोग नही करते जो जी में आया लिख दिया। और बाद में सोचते है कि इससे बेहतर भी लिखा जा सकता था। और शायद इसीलिए आपने काफी सारी ऐसी पोस्टे भी लिख मारी जो लिखने की आवशयकता ही नही थी जैसे आपकी एक पोस्ट ''शेविंग क्रीम के विकल्प'' भी है। इसमें आप बताते है कि यदी आपके पास शेविंग क्रीम खत्म हो गई है तो आप क्या आजमा सकते है, फिर पता नही क्या-क्या नुस्खें जीतू भाई बता डालते है। ऐसे सीधा-सरल और सच्चा ब्लॉगर कहां देखने को मिलेगा। जो अपने मौलिक अनुभवों को भी अपनी पोस्ट बना देता हो। हम सब जानते है कि हिन्दी ब्लॉग लेखन में अपने अनूप भाई 'फुरसतीया' का व्यंग बहुत ही मौलिक और नये प्रयोग से भरा होता है। जीतू भाई पर इसका सबसे ज्यादा प्रभाव दिखाई दिया। अपनी एक पोस्ट ''आप किस किस्म के ब्लॉगर है जी? '' ’’ में वे इनसे भी दो कदम आगे दिखाई देते है।
आप तकनीकी दक्षता में कितने आगे है इस बात का पता Gyan Dutt Pandey जी की एक टिप्पणी से चलता है- यह तो ब्लॉग का रंग रोगन ही बदल गया। हमें अचकचा कर लगा कि किसी और के ब्लॉग पर लैण्ड कर गये। रंग जम रहा है!
इस तरह के प्रयोग आपके ब्लॉग पर आम बात है। ऐसे कितने ब्लॉगर होगें जो सच में अपनी भाषा और देश के लिए इतने सर्मपण वाला जज्बा रखते हो। हिन्दी ब्लॉगिंग को इतना सरल और सुविधाजनक बनाने मे जितेन्द्र चौधरी जी का काम सलाम के लायक है। लेकिन भय्या ने अपने योगदान के साथ-साथ कुछ बुराइयां भी हिन्दी ब्लॉगिंग को भेंट की है जिनमें से एक है गुटबाजी। सिर्फ अपने साथ वालों के ब्लॉगों पर घूमना फिरना आजकल हिन्दी ब्लॉगिंग का नया तेवर है। सभी ब्लॉगर अपने-अपने गुट बनाने में लगें हुए हैं। आपके किसी साथी ने पोस्ट लिखी सारा गुट वहां जमा हो गया, और लग गए वाही-वाही में। '' तुम मुझे हाजी जी कहो, मैं तुम्हें हाजी जी कहूंगा-दुनिया हमें हाजी जी कहना शूरू कर देगी। ऐसे चलन को बढ़ाने में भी अपने जीतू भाई का योगदान अंश है। ये ब्लॉगिंग के लिए घातक प्रवृति है, और इसका जितना विरोध हो कम है। यदी कभी मन हुआ तो नये लिखने वालों के लिए '' बहुत सून्दर है '' कहकर चलते बनना और अपने याड़ी की शान में लम्बें कसीदें गुटबाजी को हवा देता है। लेकिन फिर भी मैं ये कहूंगा जितेन्द्र जी ने हिन्दी ब्लॉगिंग के लिए जितना काम किया है, उनसब में ऐसी बातों की कोई जगह नही हैं। क्योंकि हमें आने वाले दिनों में उनसे और भी आशाएं है।

अतः मैं फिर कहूंगा कि हिन्दी ब्लॉगरों पर ये तनकीद निगारी किसी जाति उद्देश्य या भावना से नही बल्कि उनके काम और लेखन पर एक विचार या राय भर है। अगली समीक्षात्मक पोस्ट मशहूर ब्लॉगर इरफान ''टूटी हुई बिखरी हुई'' पर पढ़ना ना भूले।


आलोक पुराणिक का ब्लॉग कबाड़खाना है

ब्लॉगिंग और कबाड़ का कुछ लेना देना नहीं है, लेकिन अपने बड़े भाई आलोक जी का ब्लॉग पूरा कबाड़खाना बना हुआ है, अब ये कबाड़ चुगने वाले पर निर्भर करता है कि वह यहां से मोती निकाल रहा है या बेकार की चीजे। कबाड़ की खासियत भी यही होती है कि उसमें दूर्लभ, बेशकीमती, और यूनिक चीजों का मिलना स्वाभाविक होता है और ये बात आलोक पुराणिक जी के ब्लॉग पर भी सटीक बैठती है। आलोक जी जाने-माने व्यंगकार है, जो अपना खुद का डोमेन लेकर ब्लॉग चलाते है, और आजकल अपनी पैनी धार को और भी पैना करने पर तुले हुए है।
आप तीखे तेवरों का इस्तेमाल करते हुए बचकर साफ निकलने की कला से बखूबी वाकिफ है। अभी तक के हिन्दी ब्लॉगरों में आप सबसे लाइव ब्लॉगर है जो प्रतिदिन के हिसाब से पोस्टे लिखते है, और प्रति घन्टे के हिसाब से पोस्ट देने की सम्भावना भी उनमे दिखाई देती है। हिन्दी ब्लॉगिंग में हर दूसरा ब्लॉगर अपने आपको पत्रकार सिद्ध करने पर तुला हुआ है। ऐसे में आलोक पुराणिक सर्वाधिक विश्वसनीय नाम है। राष्ट्रीय अखबारों पर आपकी पकड़ देखते ही बनती है, हिन्दी के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले दैनिक आपको विशेष जगह देते है, और आलोक जी अकसर नये-नये मुददों के साथ ठोका-पीटी करते हुए इनमे नुमाया रहते है।
आप अर्थशास्त्र पर अच्छी पकड़ रखते है और इसी के मास्ससाब है, दिल्ली कालेज में प्रोफेसरी करते है। वे पुराने जमाने के पी.एच.डी होगें ये बताने की जरूरत नहीं है। आज की हिन्दी में जो नयी तरह की भाषा का चलन बढ़ रहा है, उसमे आलोक पुराणिक का नाम लेना नहीं भूला जाएगा, और हिन्दी की ब्लॉगिंग में तो आप भाषा के एक नये प्रकार, और अजीबो-गरीब रव्वैय को आम करने पर उतारू है। आमतौर पर आलोक दूसरों की अच्छी पोस्ट पर 'धांसू च फांसू' कहना नहीं भूलते ऐसी और भी अनगिनत उपमाए आप न जाने कहां-कहां से लाते है। ये पहले ऐसे ब्लॉगर है जिसको लोग उसी भाषा में टिप्पणी देना चाहते है जिसे वह परोस रहा है। ''बहुत करारा आईटम लाये'' या फिर ''मस्त-मस्त पोस्ट'' या फिर ऐसे भी “क्र्कोघ्ह घ्ज्फ्द घ्ज्क्द द्द्फ्द्ग्र्ह्व घ्र्त्र्त्द्स्द फ्द्फ्ह्ग्फ्ह्ज घ्ह्ह्क्ज्द” अर्थात आपने क्या खूब लिखा है बधाई स्वीकारें , जैसी टिप्पणीया आपको आलोक जी की पोस्टें पर खिलखिलाती दिख जाएगी।
अपनी ही प्रकार की शैली का ब्लॉगर जिसने खुद अपनी तरह की भाषा को ब्लॉगिंग में मान्यता दिलाई। मशहूर ब्लॉगर Gyan Dutt Pandey जी आपके ब्लॉग के नियमित पाठक है वह आलोक जी की थकी हुई पोस्टों पर भी टिप्पणी करना नहीं भूलते। आलोक भाई मैथिली जी के बहुत बड़े प्रशंसक है। और कम्प्यूटर पर हिन्दी के तकनीकी विकास के योगदान में मैथिली जी के काम पर आपने शानदार पोस्टे लिखी है।
मैं आलोक जी को एक गुजरे जमाने से जानता हूं तब वह अपने मुछों वाले फोटो के साथ अपना कॉलम देते थे। आजकल तो क्लीन शेव नजर आते है, पहले आप अखबारों में जो तस्वीरे दिया करते थे, वे एक व्यंगकार का चुटीलापन लिए हुए गभ्भीरता की चाशनी के साथ नजर आती थी। आजकल आप, अपने बढ़िया टूथपेस्ट की खूबियों को दिखाने करने में लगे हुए है (वह अब क्लीन शेव के साथ कृत्रिम मुस्कूराहट वाली तस्वीरे ही देते है ) व्यंगकार होना बड़ी जिम्मेदारी का काम है, ये बात हम शरद जोशी जी या हरिशंकर परसाई या दूसरे नामी व्यंगकारों के काम से बखूबी समझ सकते है। शरद जोशी जी के व्यंग तो देश के प्रधानमंत्री की हवा भी निकाल देते थे। और ये काम सिर्फ एक व्यंगकार ही कर सकता है। इन महान व्यंगकारों का ये सलैक्टड काम था। बेहद चुनिंदा और सार्थक पर आजकल आलोक जी इस तरीके को भूल गए है। उनका यकीन अब क्वालिटी की बजाय क्वांटिटी की तरफ रहता है। धड़ाधड़ लिखने पर उतारू है, जैसा भी, जो भी दिखेगा, बस व्यंग कहना है जी, कुत्ता, बिल्ली, घोड़ा, हाथी, चिमटा, फूंकनी, बेलन, करछी जो हाथ आ जाए। इस चक्कर में व्यंग की मारक क्षमता तो हाथ से जाती ही है, साथ ही साथ पोस्ट बोझिल और उबाउ हो जाती है। व्यंग की लीद निकालने के इस तरीके को ब्लॉगिंग की हिंसक प्रवृत्ति कहना चाहिए।
मैं इस सबका ठिकरा आलोक जी के सर ना फोड़कर प्रसून जोशी के मत्थे मढ़ना चाहूंगा। प्रसून जोशी (प्रसिद्ध फिल्मी गीतकार, राइटर, विज्ञापन एजैसी के संचालक, आमिर खान के सबसे प्रिय, कोका कोला को नयी पहचान देने वाले और भारत में अपनी खास उपस्थिति को दर्ज करने वाला एक आम से खास बनने वाला व्यक्ति) ही वो आदमी है जिसको देखकर आलोक जी बिगड़ गए है। इस प्रसून के बच्चे ने जिस तेजी से कामयाबी पाई और कामयाबी के जो नए शार्टकट दिखाए वो किसी को भी बिगाड़ सकते है। बस शायद इन्हे देखकर ही अपने आलोक भय्या बिगड़ गए।
अब कर डाले कुछ आड़े-तिरछे काम, अशोक चक्रधर जी का दामन पकड़कर मंचीय कविता शूरू की, लेकिन वहां तो गलेबाजो और अदाकारों का कब्जा था। तो एक न चली, वापस हो लिए। फिर सुना की किसी टीवी कार्यक्रम के लिए प्रस्तोता होने जा रहे है, अब वो खबर भी पूरानी पड़ गई। आजकल धड़ाघड़ लिखकर अपने प्रशंसकों की संख्या कम करने पर लगे हुए है। लेकिन एक बात जो मैं बहुत अच्छे से जानता हूं कि जो आदमी ब्लॉगिंग को एक नयी दिशा देने की सार्मथ्य रखता हो वह अपनी धुरी पर लौटना भी बखूबी जानता होगा। हम अगर कल के किसी शरद जोशी या हरिशंकर परसाई की बात करते है, तो बहुत सम्भव है आज के आलोक पुराणिक की बात लोग कल करें।

(मेरा आलोक जी से प्रेम उतना ही बरकरार है, जितना कल था, उनके बहुत सारे प्रशंसकों में से, मैं भी एक हूं, और हिन्दी ब्लॉगरों पर ये तनकीदनिगारी किसी जाति उद्देश्य या भावना से नही बल्कि उनके काम और लेखन पर एक विचार या राय भर है। अगली समीक्षात्मक पोस्ट मशहूर ब्लॉगर जीतेन्द्र चौधरी ''मेरा पन्ना'' पर पढ़ना ना भूले। आपकी टिप्पणीयां मेरे लिए बेहद मूल्यवान है, जो अच्छा लिखने के लिए हमेशा प्रेरित करती रहती है।)