मेरा मानना है, हिन्दी और उर्दू हमारी अपनी जबानें हैं जिनके लिए हम काम कर रहे है, लेकिन बतौर अग्रेजी तड़का लगाने के लिए ही ठीक हैं। हमारा टेलीविजन और फिल्म उधोग आज भी अग्रेजी को तीसरी जबान के रूप में लेता हैं। क्योकि जिनके लिए हम काम कर रहे है, वो इसी जमीन के लोग है। अपने बारे में कहना हमेशा मुश्किल होता है और बताने के लिए कुछ ख़ास है भी नही।
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