आप कभी कम्यूनिस्ट रहे हैं। अगर कम्यूनिज्म को आपने जाना हो, हिन्दी, अग्रेज़ी, उर्दू साहित्य आपने पढ़ा हों। पूरानी गली-कूचों की खाक छानी हो। लम्बी बेहसों, भाषणों, धरनों में हिस्सा लिया हो। आपके पास बेलबोटम की पेंन्टें हो, कोई एक पुराना रेडियों, डाक टिकट, पूराने गीतों और किताबों का कलैक्शन हो। नाटक देखते भी हो, करते भी हो। क्या आप ऐसे है अगर नही तो इरफान तो ऐसे ही है। इतना सब होने के बाद ये पत्रकार भी है, अदबनवाज भी। आप देश के ख्यातीप्राप्त पत्रकारों में से एक है। ये वो ही पूराने वाले पत्रकार है जिनके पास बहुत सारे खादी के कुर्ते और एक झोला होता है, झोले में एक डायरी, दोपहर का खाना, पुराने खतोकिताबत और तेज नजर के साथ अपार ज्ञान होता हैं। इरफान भाई जितने मशहूर पत्रकार है, उतने ही शौहरतयाफ्ता ब्लागर भी हैं। एक जमाना हो गया इरफान को पत्रकारिता करते हुए हम जैसे कल के बच्चे तो दुनिया में पैदा भी ना हुए थे। जबसे इरफान भाई ने बोलना और लिखना शुरू किया है। रेडियों आप की नसों में खून की जगह बहता हैं। अगर आप पुराने रेडियों सूनने वाले है तो इरफान से जरूर वाकिफ होगे।
रेडियो के शौक ने आपके फन को निखारा और जमाने के सामने नई चीजों को पेश किया। इरफान बहुत शानदार पोस्टें लिखते है। बेहतरीन साहित्य आपके ब्लाग पर साउण्ड फार्मेट में आपको मिल सकता हैं। आज जब लोग ब्लाग पर जमकर फ्री की भाषणबाजी कर रहे है। ऐसे में इस आदमी ने भाषा के नायाब साहित्य को साउण्ड फार्मेट में कनवर्ट करके अपने ब्लाग पर डाला है। आप यहां पर कई सारी मशहूर कहानीयां, दूर्लभ इंटरव्यू, रोचक किस्से, बेशकिमती ना मिलने वाले गीत और जाने क्या-क्या अजग-गजब इरफान के ब्लाग पर मिल जाता हैं। इरफान शुरू से ही जमीन के आदमी रहे हैं, लेकिन बदलती दुनिया के मिजाज ने आपको भी मार्डन बना दिया हैं। आप अपना पूरा नाम इरफान सैय्यद मुहम्मद लिखते हैं और दिल्ली में रहते हैं। बतौर पेशेवर आप लिखने के साथ-साथ रेडियो ब्रॉडकास्टिंग से भी जुड़े हुए हैं। रामरोटीआलू आपका ईमेल पता हैं। आपके प्रंशसकांे में सबसे ज्यादा संख्या महिलाओं की है। इरफान से आज भी लोग उनके फोटो की मांग करते हैं। इरफान को पूरानी चीजों से बेहद लगाव है चाहे वो कबाड़ ही क्यों ना हों। इरफान भाई जितना रेडियों पर सूने जाते है उतना ही अखबारो में पढ़े जाते हैं। आमतौर पर हिन्दी ब्लागिंग में मशहूर है कि इरफान भाई अपने ब्लाग टूटी हुई बिखरी हुई पर जो सुनाते हैंए जाने कहां से छांट छांट के लाते हैं। इरफान अपने दोस्तो में खासे मशहूर है उनके बारे में अजीज, पराशर सहाब का कहना है- इरफान साब अच्छे इनसान हैं, पिछले छह.सात महीनों से उनसे मुलाकात नहीं हुई है, अलबत्ता फोन पर गुफ्तगू कभी.कभी हो जाती है। पिछली मुलाकात श्रीराम सेंटर में हुई थी जहां तंजो.मिजा की दुनिया के बेताज बादशाह और मेरे अजीज मुज्तबा हुसैन साहब की किताबों की निंदा करते हुए वे उसे कबाड़ी को बेचने की बात कह रहे थे।
इरफान के लिए अपना ब्लाग लिखना जेहनी सुकून पहुंचाने का जरिया है और लोगों को अपनी पसंन्द की चीजों से अवगत कराने का। इसलिये आपकी पोस्टे औरो से अलग होती हैं, और इसी अलग के चक्कर में कई बार बड़ी फजीहत भी उठानी पड़ जाती हैं। पिछले दिनों आप अपनी एक पोस्ट ’’शील, अश्लील और पतनशील: कुछ टिप्स’’ के चलते विवादो में फंस गए थे। इस पोस्ट में नारी और पुरूष सम्बधों पर एक पुराणिक सन्दर्भ की बात कि गई थी। इस पोस्ट को लेकर अपने भड़ास भैय्या यशवंत तो इरफान भाई के पीछे ही पड़ गए थे उनका कहना था कि ’’ अगर औरते सर्वजनिक जीवन मे एक इंसान के बतौर सम्मान की मांग करे तो आपके जैसे वाम पंथियो को भी इस तरह के भय सताते है ’’ और उन्होने इसको लेकर एक मुहिम शुरू कर दी थी। जिसके चलते इरफान भाई को पोस्ट से सम्बधित कार्टून को हटाना पड़ा था। इस पर अपनी नीलीमा जी भी बहुत गरजी थी। आपने कहा- इरफान दादा ये क्या हुआ आपको ? इतने गर्तवान पातालगामी पतनशीलता के टिप्स ! और जाने दीजिए ये भाव विस्तारपरक चित्र कहां से मार लाए ? ये कुरुचिपूर्ण स्त्री विमर्श है या आपका आंतरिक भय या कि फिर आपका जेंडर ग्यान हाइपर हो गया है ????लेकिन इस पर दिनेशराय द्विवेदी जी की कुछ अलग ही राय थी आपने कहा कि इरफान भाई हम तो आप की इस पोस्ट को पढ़ कर आप के कायल हो गए। बात ऐसे की जाती है। उद्धरणों में क्या रखा है। अगर माँ की गाली वेद में लिखी होती तो क्या ब्रह्मवाक्य मान कर सिर पर लगा लेते क्या? आप ने बात भी कही और भाषा का भी निर्वाह किया। आप को बहुत बहुत बधाई।
इरफान जो कटैंट या सामग्री अपने ब्लाग पर रखते है उसके कापीराइट के बारे मे बहुत सजग दिखते है। कटैंट की मारामारी पर उन्होने एक बार कहा था कि- यह निवेदन ब्लॉग और इंटरनेट महारथियों से रवि रतलामी, श्रीश, अविनाश, देबाशीश, मैथिली, सागर नाहर और जीतू चौधरी सहित उन तमाम लोगों से है जिन्होंने हमें चोरी की राह पर ढकेला है। मैं भाई यूनुस, विमल वर्मा, पारुल, अशोक पांडे, प्रमोद सिंह और उन सभी मित्रों से आग्रह करता हूँ जो पूर्व प्रकाशित साहित्य और प्री.रेकॉर्डेड म्यूज़िक अपने ब्लॉग्स या साइट्स पर अपलोड करते हैंए वे बताएं कि क्या हम सब चोर हैं?
वैसे इरफान इन छोटी बातों और विवादो से परे है। वो अपनी मर्जी का ब्लाग चलाते हैं। उनके ब्लाग पर फैली विविधता को देखते हुए आपको उनकी पसन्द का कायल होना ही पड़ेगा। जो आदमी इतने जतन से चीज़ो को खोज-खोज कर ला रहा हो, उन्हे तराश रहा हो, सजा कर पेश करता हो तो वो किसी ब्लाग से ज्यादा एक धरोहर बन जाता है। इरफान यही काम कर रहे है। वह दूसरों को कुछ देने के लिए ब्लागगिंग कर रहे हैं। अभी बहुत दिनों से आपने कोई पोस्ट नही लिखी है। लेकिन अखबारो में लगातार लिख रहे है। आज जब हिन्दी में ब्लाग लगातार बढ़ रहे है। ऐसे में सार्थक और उपयोगी ब्लागों की संख्या बहुत कम है तब इरफान का टूटी हुई बिखरी हुई एक ताजगी का अहसास कराता हैं।
हर बार की तरह ही अतः मैं फिर कहूंगा कि ये तनकीद निगारी किसी जाति उद्देश्य या भावना से नही बल्कि उनके काम और लेखन पर एक विचार या राय भर है। अगली समीक्षात्मक पोस्ट मशहूर ब्लॉगर और नामचीन महिला पत्रकार मनविंदर भिम्बर ’’मेरे आस-पास’’ पर पढ़ना ना भूले।
इरफान के लिए अपना ब्लाग लिखना जेहनी सुकून पहुंचाने का जरिया है और लोगों को अपनी पसंन्द की चीजों से अवगत कराने का। इसलिये आपकी पोस्टे औरो से अलग होती हैं, और इसी अलग के चक्कर में कई बार बड़ी फजीहत भी उठानी पड़ जाती हैं। पिछले दिनों आप अपनी एक पोस्ट ’’शील, अश्लील और पतनशील: कुछ टिप्स’’ के चलते विवादो में फंस गए थे। इस पोस्ट में नारी और पुरूष सम्बधों पर एक पुराणिक सन्दर्भ की बात कि गई थी। इस पोस्ट को लेकर अपने भड़ास भैय्या यशवंत तो इरफान भाई के पीछे ही पड़ गए थे उनका कहना था कि ’’ अगर औरते सर्वजनिक जीवन मे एक इंसान के बतौर सम्मान की मांग करे तो आपके जैसे वाम पंथियो को भी इस तरह के भय सताते है ’’ और उन्होने इसको लेकर एक मुहिम शुरू कर दी थी। जिसके चलते इरफान भाई को पोस्ट से सम्बधित कार्टून को हटाना पड़ा था। इस पर अपनी नीलीमा जी भी बहुत गरजी थी। आपने कहा- इरफान दादा ये क्या हुआ आपको ? इतने गर्तवान पातालगामी पतनशीलता के टिप्स ! और जाने दीजिए ये भाव विस्तारपरक चित्र कहां से मार लाए ? ये कुरुचिपूर्ण स्त्री विमर्श है या आपका आंतरिक भय या कि फिर आपका जेंडर ग्यान हाइपर हो गया है ????लेकिन इस पर दिनेशराय द्विवेदी जी की कुछ अलग ही राय थी आपने कहा कि इरफान भाई हम तो आप की इस पोस्ट को पढ़ कर आप के कायल हो गए। बात ऐसे की जाती है। उद्धरणों में क्या रखा है। अगर माँ की गाली वेद में लिखी होती तो क्या ब्रह्मवाक्य मान कर सिर पर लगा लेते क्या? आप ने बात भी कही और भाषा का भी निर्वाह किया। आप को बहुत बहुत बधाई।
इरफान जो कटैंट या सामग्री अपने ब्लाग पर रखते है उसके कापीराइट के बारे मे बहुत सजग दिखते है। कटैंट की मारामारी पर उन्होने एक बार कहा था कि- यह निवेदन ब्लॉग और इंटरनेट महारथियों से रवि रतलामी, श्रीश, अविनाश, देबाशीश, मैथिली, सागर नाहर और जीतू चौधरी सहित उन तमाम लोगों से है जिन्होंने हमें चोरी की राह पर ढकेला है। मैं भाई यूनुस, विमल वर्मा, पारुल, अशोक पांडे, प्रमोद सिंह और उन सभी मित्रों से आग्रह करता हूँ जो पूर्व प्रकाशित साहित्य और प्री.रेकॉर्डेड म्यूज़िक अपने ब्लॉग्स या साइट्स पर अपलोड करते हैंए वे बताएं कि क्या हम सब चोर हैं?
वैसे इरफान इन छोटी बातों और विवादो से परे है। वो अपनी मर्जी का ब्लाग चलाते हैं। उनके ब्लाग पर फैली विविधता को देखते हुए आपको उनकी पसन्द का कायल होना ही पड़ेगा। जो आदमी इतने जतन से चीज़ो को खोज-खोज कर ला रहा हो, उन्हे तराश रहा हो, सजा कर पेश करता हो तो वो किसी ब्लाग से ज्यादा एक धरोहर बन जाता है। इरफान यही काम कर रहे है। वह दूसरों को कुछ देने के लिए ब्लागगिंग कर रहे हैं। अभी बहुत दिनों से आपने कोई पोस्ट नही लिखी है। लेकिन अखबारो में लगातार लिख रहे है। आज जब हिन्दी में ब्लाग लगातार बढ़ रहे है। ऐसे में सार्थक और उपयोगी ब्लागों की संख्या बहुत कम है तब इरफान का टूटी हुई बिखरी हुई एक ताजगी का अहसास कराता हैं।
हर बार की तरह ही अतः मैं फिर कहूंगा कि ये तनकीद निगारी किसी जाति उद्देश्य या भावना से नही बल्कि उनके काम और लेखन पर एक विचार या राय भर है। अगली समीक्षात्मक पोस्ट मशहूर ब्लॉगर और नामचीन महिला पत्रकार मनविंदर भिम्बर ’’मेरे आस-पास’’ पर पढ़ना ना भूले।