आत्मा तक चित्कार उठती है

आजकल बारिशों का मौसम हैं। पूरा दिन टपकता रहता है, बारिश की वजह से कही बाहर जाना नही हो पा रहा था। शाम में पापूलर भाई आ गए थे, वो 30 जुलाई में एक प्रोग्राम करने जा रहे है, कुछ लोगों को कार्ड देने थे, मैं चल पड़ा। बारिशमें भीगते-बचते हम निकल पड़े, साथ में जमीर मियां थे, गाड़ी वो ही ड्राइव कर रहे थे। साढ़े सात या आठ बज रहे होगें, जोशी जी का फोन आया, किसी अमित सक्सैना का पता मालूम कर रहे थे, वो एक उपन्यासकार है, उन्होने ही मुझे बताया, किसी कविता पाकेट बुक्स ने उसका उपन्यास छापा है, मैंने मनेष जी को फोन खड़काया, हमेशा की तरह शाम को उनका फोन बन्द ही मिला, सलीम भाई से पता किया- कौन है ये अमित सक्सैना, उन्होने दो-तीन अमितों का हवाला दिया- मैंने जोशी जो को सलीम भाई के हवाले किया।
पापूलर जी के साथ आगे बढ़े बच्चा पार्क आ गया था, मैं घन्टाघर से ही डोसा खाने की सोच रहा था, यहां अच्छा डोसा मिल जाता है, कार्ड लगभग बंट चुके थे। हम बच्चा पार्क पर उतर गए। जमीर भाई चले गए थे। पापुलर जी ने कहा जब यहां आए है तो, धामा जी से भी मिलते चले, मैं फोन करता हूं, अगर वो हो तो, तुम रिक्शा रोको। एक रिक्शे वाला मेरी तरफ आया। इतनी बारिश में वो अकेला चोपले पर खड़ा हुआ था, वो एक बुढ़ा आदमी था, और भीगा हुआ था, बोला- कहां चलना है, ‘मैं चलता हूं’ तभी पापूलर भाई ने बताया कि अब नही जाना। धामा साहब घर पर नहीं है, आओ डोसा खाते है, वो गजीबो की और चल दिये।
उस बुढ़े रिक्शे वाले ने कहा- कि कोई भी बुढ़ा समझ कर मेरे रक्शे में नही बैठता, अभी तक बोनी भी नही हुयी, गांव से आता हूं मैं। उसकी बात सुनकर मैं एकदम से जड़ हो गया था, मुझे असीम करूणा उसमें दिखाई दे रही थी। कैसी लाचारी है, इसके साथ, मेरा दिल अन्दर से एकदम टुकड़े-टुकड़े हुए जा रहा था। आदमी के साथ भी क्या-क्या मजबूरीयां होती है, मैंने उस रिक्शे वाले से कहा- बाबा सबके साथ कुछ ना कुछ परेशानियां है, हर आदमी जो सही दिख रहा है, कही अन्दर से टूटा हुआ है। ये कहकर में आ गया। गजीबों में बैठे। डोसे का आर्डर दिया। एक छोटा सा बच्चा टेबल साफ करने आ गया। इतने छोटे-छोटे मेरे भांजे हैं, ये उनकी उम्र का ही होगा। में ये सोच रहा था। डोसा खाने में मन ना लगा। ऐसे ही छोड़ दिया। पापूलर जी ने पूछा क्या हुआ। मैंने कहा-कुछ नही आओं चलते है। घर आया, टेलीविजन पर देखा। भारत अब पहले से कही अधिक सम्पन और शक्तिशाली हो गया हैं। में इस तरक्की हो जब तक झूठा मानता हूं तब तक कोई बुढ़ा रिक्शे वाला भरी बारिश में रोटी के जुगाड़ के लिये मारा-मारा फिरता हो।

हिन्दी ब्लॉगिंग के 10 सबसे बड़े खतरें

हिन्दी ब्लागिंग तेजी से अपने कदम बड़ा रही है, लेकिन कुछ ऐसी बातें भी हो जो सबसे लिये समस्या बनकर आयी है, प्रस्तुत है, ऐसी ही 10 बातें।

1-बेनामी एक ( anonymous) बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आया है। ये जिधर चाहे मुंह मार देता है, कोई इसको रोकने-टोकने वाला नही है। इनको पकड़ने का अभी तक कोई पक्का इंतजाम नही है, ब्लॉगर आलोचना का स्वागत कर सकते है, लेकिन गालियों और बदतामिजी का नहीं। (बेनामी कोई और नहीं हैं, हम खुद ही चेहरा बदलकर एक-दूसरे को कोसते है)

2-हम लोग धड़ाधड़ लिखने पर उतारू हो गए है, लगातार पोस्टों पर पोस्टे दे रहे है, लेकिन सामूहिक रूप से हमारी फ्रिक ये बिल्कुल नही है कि हमें हमारे ब्लॉग से भी कुछ आमदनी होनी चाहिये, ये भी एक खतरा है, क्योकि अपने ब्लॉग पर हर कोई अपना बेस्ट देता है, जिसका उसे कुछ ना कुछ मेहनताना मिलना ही चाहिये।

3-लोगों को लिखने से मतलब, क्या लिखा, कुछ भी जो दिमाग में आया, फिर हम कहते है- अरे फलां का ब्लॉग बड़ा अच्छा चल रहा है, उस पर बहुत भीड़ रहती है, हमें अपने लेखन के जरिये अपने आप को ब्रांड में बदलना आना चाहिये। तभी हम अपना मजबूत पाठक वर्ग तैयार कर सकगें। (याद रखना ज्यादा टिप्पणीयां और प्रशंसक किसी के अच्छा लिखने की गांरटी नही है, बल्कि ये चापलूसी और टिप्पणी के बदले टिप्पणी वाला सिस्टम भी होता है।)

4. कुएं के मेढ़क बने रहना, हमेशा ही, प्रत्येक पोस्ट में एक सा लिखते रहना, चाहे वो सरकार को कोसना हो, हिन्दूव का ढोल पीटना हो, आंतकवाद की दुहाई हो। या इसके आस-पास जैसा कुछ। इससे बचे! ये आपके वातावरण और पालनपोषण को उजागर करता है।

5. ऐसे कई ब्लॉगर प्रकाश में आए है, जो तीन-तीन, चार-चार घटें के अतंराल से लगातार पोस्टे देते है। उनकी पोस्टों को पढ़ने वालो की कुल जमा-पूंजी चार या पांच लोग। (ये फिर भी बाज नही आते) ये एक दिन ब्लॉगिंग को फ्री से निकाल कर पैसों की करवाकर ही बाज आएगे।

6-सर्कीण मानसिकता वाले ब्लॉगरों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। धर्म को बचाने का ठेका इन्होने ही लिया हुआ है। अपनी घटिया बयानबाजी और एकतरफा लेखन से ब्लॉगिंग को प्रदूषित करने वाले ब्लॉगर भी बड़े खतरों में से एक है।

7- पुराने पुरोधाओं की गुम होती पहचान- अब तो काफी ब्लॉगर हो गए है, लेकिन कभी इस क्षेत्र के खिलाड़ी कोई और ही थे, एक ब्लॉगर जो पुणे में रहते है, तकनीकी विषेषज्ञ है, बड़ी गालियां बक रहे थे- हमने इतना कुछ किया हिन्दी ब्लॉगिंग को पहचान दिलायी, और आज हम ही गायब से हो गए। हमें इन लोगों को भी याद करना चाहिये, ये लोग भी हिन्दी ब्लॉगिंग के ब्लेक एण्ड व्हाइट दौर के नायक हुआ करते थे कभी।

8- अगर कोई किसी का मेटर उठा लेता है, तब हम क्या कर सकते है, ऐसा कोई प्रावधान नही है, क्योंकि यहां पर अधिकांशत लिखने वाले नॉन प्रोफेशनल है, कहीं छप नही पाए है, अगर आपके लेखन का कोई इस्तेमाल करे तो ये अच्छी बात है बशर्ते आपको भी उसका लाभ मिलना चाहिये।
9- कुछ सालों में ही हिन्दी ब्लॉगिंग की फिजा बदलने वाली है, दस-बीस हजार नही, लाखों की संख्या में ब्लॉगर लिख रहे होगे। आपका क्या होगा। कैसे टिकोगे, कभी सोचा है, अभी तो मजे की मिल रही है,

10- सबसे महत्वपूर्ण बात! आपने ब्लॉगिंग करते हुए किसी को क्या दिया। आप सिर्फ बकवास ही लिखते है, या कुछ बदलाव लाने वाला भी लिखते है, ऐसा कुछ जिसे पढ़कर पाठक प्रेरित हो, स्फुर्ति महसूस करे। (हिन्दी ब्लॉगिंग में अगर 13 हजार ब्लॉग है तो इनमें तीन प्रकार के ब्लॉग सर्वाधिक है, पहले वे लोग जो कविताए लिखते है, यहां कवियो और कवित्रियों की भरमार है, कविताएं भी ऐसी आदमी पढ़कर आत्महत्या की सोचने लगें। दूसरे जो सलाह देने वाले लोग है, देश ऐसे चलना चाहिये, नीतियां ऐसी होनी चाहिये, प्रधानमंत्री को ये करना चाहिये, इसने ये गलत कर दिया, मैंने ये सही कर दिया। दुनिया की सारी चिंताओं का हल इनके पास है, सिवा खुद के। तीसरे नम्बर पर वे ब्लॉगर सर्वाधिक है जो पत्रकार हुए जा रहे है, जिसको देखो वो यहां पत्रकार हुआ जाता है, अगर नही है, तो भी खुद को कहेगा जरूर। यहां क्या पत्रकारिता की डिग्रीयां बट रही है)