ब्लागवाणी का बंद होना

ब्लागवाणी का बंद होना, मानो सभी सम्पर्को पर ताले लग जाने जैसा है। जब तक कुछ ताजा पढ़ा-लिखी ना कर ले तब तक खाना भी हजम नही होता। ऐसा बहुतों का हाल है। ब्लागवाणी का बंद होना अब अखरने की हद तक आ पहुंचा है। इतना ही नही इसकी सुगबुगाहटे अब सुर्खियों का हिस्सा भी बनने लगी है। प्रस्तुत है, प्रख्यात पत्रकार मनविदंर भिम्बर जी दैनिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित फीचर कथा, जो बता रही है आखिर क्या वजह रही है ब्लागवाणी के बंद होने की।

मग्न रहूं तो कोई क्या बिगाड़ लेगा।

गुस्सा, अवसाद, हर्ष और रोमांच आजकल एकसाथ महसूस हो रहा है। गुस्सा इसलिये कि कोई कहने में नहीं है, अवसाद इसलिये कि मनचाहा हो नहीं रहा हर्ष इसलिये कि कितना कुछ नया कर पा रहा हूं और रोमांच इसलिये कि कुछ अनोखा जुड़ रहा है। भावनाओं को सलाम करता हूं। जितनी ज्यादा जीने के लिये सांसों का होना जरूरी है, उतना फिलिंग्स के उतार-चढ़ाव का होना जरूरी है।
मनेश कहते है, इरशाद भाई भावनात्मक आदमी की कोई क्रद नहीं है और क्रिएटिव आदमी तो किसी काम का ही नहीं, फिर मनेश अपने चारों तरफ क्रिएटिव और भावनात्मक लोगों के हुजूम को क्यों जोड़े रखते है। खैर अपनी बात करें। मुझे गुस्सा उस पर है जिसे कुछ कह नही पा रहा हूं, अवसाद कि वजह खुद ही हूं, मग्न रहूं तो कोई क्या बिगाड़ लेगा। हर्ष इस बात पर कि आप जो-जो भी चाहते है आप पा सकते है, अपनी सोच को आप जिस भी किस्म की ज़मीन देगें वैसे ही फसल तैयार होने लगती है, मैं आर्थिक परिदृश्य के संदर्भ में बात कर रहा हूं। और रोमांच जिंदगी में कम ही नसीब होता है, लेकिन आजकल हो रहा है, इसको हम रोमांस का नाम दे सकते है क्या? आप अनाम रिश्तों को क्या कह सकते है। कभी मनेश जी से पता करूंगा। क्योंकि सारे ठेके उन्हीं के पास है।
खैर आजकल फलैश सीख रहा हूं। बहुत पहले सीखना चाहता था, अब जब ज्यादा तंग हो गया तो शुरू किया। सलीम भाई रोज-रोज कैसे लिख लेते है, क्या कोई बतायेगा, या इनके पास कोई काम नहीं है, ओह ये अनुराग जी तो क्लासिक लेखन के वरदान होये जा रहे है, और अपनी मनविंदर मेम के क्या कहने। आजकल जोशी जी कहां है, कोई उनकी खबर देगा क्या।

इसे यूं ही न जाने दो!

बहुत पहले जब फुरसतिया मतलब अनुप जी को पढ़ा था तो सोचा, यार! ये बन्दा क्या कमाल का लेखन हिन्दी ब्लागिंग के लिये कर रहा है। अनुप जी की तरह ही और भी लोग प्योर कटैंट अपने ब्लाग पर उपलब्ध करा रहे है। इनमें चाहे गीत-संगीत हो समीक्षात्मक लेखन या फिर विशलेषात्मक तथ्यों से लबरेज चर्चांए हो।
ऐसे बहुत अच्छा लिखने वालों की हिन्दी ब्लागिंग में एक लम्बी श्रंृखला रही है। मैं यहां किस-किस का नाम लूं जिन्होने अलग-अलग प्रकार के लेखन का सृजन किया और अपने ब्लाग को बनाया तथा पढ़ने वालो को उनके ब्लाग के माध्यम से एक नये तरह के व्यक्तित्व को जानने समझने का मौका मिला। इसी के चलते हिन्दी ब्लागों की लोकप्रियता बढ़ी। ये हम सब जानते है कि हिन्दी ब्लागिग का भविष्य बेहद सम्भावनाओं से भरा हुआ है लेकिन ब्लागिंग के घटिया चलन और भीड़ के कारण जो संड़ाध आज यहां उठ रही है वो ना सिर्फ इसकी लोकप्रियता को घटायेगी बल्कि अच्छा पड़ने वालों को इससे दूर भी करेगी।
हमारा ब्लाग हमारी धरोहर होना चाहिये, हमारे घर की तरह साफ-सुथरा, कलात्मक। आमतौर पर यहां नये लिखने वाले और असाहित्यिक लोग टिप्पणीयों के मोहताज रहते है, छोटे-मोटे टोटके आपको कुछ दिन चर्चां में जरूर रख सकते है लेकिन आपका पाठक वर्ग खड़ा नही कर सकते है।
यहां प्योर ही और दूसरो को सुख और ज्ञान देने वाला कटैंट से भरा हुआ ब्लाग आपको नियमित पढ़ने वालो से जोड़े रख सकता हैं। आपका कटैंट ऐसा हो कि पढ़ने वाला उसे अपनी जरूरत में शामिल कर ले अर्थात कुछ ऐसा लिखिए जो दूसरों की जरूरत बन जाए।
यदि आप छपास की पीड़ा से त्रस्त है तो कृपया अपना मानसिक कूड़ा यहां ना फैलाए। हमारा ब्लाग हमारे लिये एक मौका है जब हम अपना परिचय दूसरों से करा रहे होते है तो दोस्तो हम इसे यूंहीं न जाने दे।

गुलज़ार ने आखिर ऐसा गीत क्यों लिखा होगा

डर लगता है तन्हा सोने में जी, दिल तो बच्चा है जी!
गुलज़ार का लिखा ये गीत अभी हाल ही में रिलीज़ फिल्म इश्किया में हम लोगों ने सुना हैं। आपको क्या लगता है गुलज़ार ने इस तरह के गीत को लिखने से पहले क्या सोचा होगा?
ऐसी उलझी नज़र उनसे हठती नहीं
दांत से रेशमी डोर कटती नहीं
उम्र्र कब की बरस के सुफेद हो गयी
कारी बदरी जवानी की छंटती नहीं
वल्लाह ये धड़कन बढ़ने लगी है
चेहरे की रंगत उड़ने लगी है
डर लगता है तन्हा सोने में जी
दिल तो बच्चा है जी, दिल तो बच्चा है जी
थोड़ा कच्चा है जी
किसको पता था, पहलू में रक़्खा, दिल ऐसा पाजी भी होगा
हम तो हमेशा समझते थे कोई हम जैसा हां जी ही होगा
हाय ज़ोर करे, कितना शोर करे,
बेवजह बातों में ऐवें गौर करे
दिल सा कोई कमीना नहीं
कोई तो रोके, कोई तो टोके
इस उम्र में अब, खाओगें धोखे़
डर लगता है इश्क करने में जी
दिल तो बच्चा है जी, दिल तो बच्चा है जी
थोड़ा कच्चा है जी
हां... दिल तो बच्चा है जी
ऐसी उदासी बैठी है दिल पे
हंसने से घबरा रहे हैं
सारी जवानी कतरा के काटी
बीड़ी में टकरा रहे है
दिल धड़कता है तो, ऐसे लगता है वो
आ रहा है यही, देखता ही ना हो
प्रेम की मारे कटार रे
तौबा ये लम्हें, घटते नही क्यों
आंखों से मेरी, हटते नही क्यों
डर लगता है खुद से कहने में जी
दिल तो बच्चा है जी, दिल तो बच्चा है जी
थोड़ा कच्चा है जी
दिल तो बच्चा है जी