बचपन

धीरे से उम्र गुजरी है
दबें कदमों की आहट से
किसी को पता ना चलें
तुम कहां से आये हो
पुरानी सी कोई बात हो चली
जैसे स्कूल के दिन
पतंग उड़ाने का लुत्फ
बारिश में नहाना
जोर से चिल्लाना
देर से उठना
रात तक जागना
गली में बैठना
और जाने क्या-क्या
अब एक रूटिन है
बस कुछ और नहीं
हम बढ़े हो गये।
इरशाद

ये विरासत है अमृता प्रीतम की हम मनविंदर भिम्बर समझ रहे हैं।

भागदौड़, तेज रफ्तार जिन्दगी, दिनभर के कामकाज, नये तनाव नये दबाव, फास्टफूड, तेज संगीत, हाईफाई सोशल लाइफ के बीच सारी उमर निकले जा रही है। इसी के बीच में कुछ पल अपने आप से बातें करने के लिये मिल जाए, रूह के रिश्तों की समझ का अन्दाजा लगा सके, पुरानी यादों के टुकड़ों को सजों कर रख पाए। क्या आप ऐसा ना करना चाहेगें। मनविंदर भिम्बर तो ऐसा ही करती हैं। जानी-मानी पत्रकार हैं, धडल्ले से लिखती है अगर लिखने पर आ जाए। पत्रकारिता को अपनी जिन्दगी दी हैं। आजकल कटे हुए बालों वाली फैशनेबल महिला पत्रकारों का दौर है, जो खबरों की दुनिया से परे ग्लैमर की नुमाइश ज्यादा करती है। ऐसे में ठेट पंजाबी लुक वाली, संस्कारों की प्रबल पैरोकार मनविंदर ना सिर्फ कामयाब है बल्कि बेहद शौहरतयाफ्ता भी।
जागरण जैसे पत्र के साथ आपका पिछले चौदह-पन्द्रह सालों का साथ रहा है। आजकल दैनिक हिन्दुस्तान को गरिमा प्रदान कर रही हैं। मनविंदर जी का काम करने और लिखने का अपना ही एक अलग अंदाज है। मुझे याद है पिछली दिवाली पर उन्होने पूरे पेज का एक परिशिष्ट तैयार किया था जिसमें उन्होने बताया था कि शहर में क्या-क्या बढ़िया और स्वादिष्ट व्यंजन कहां-कहां मिलता हैं। इसकी कवरेज के लिये उन्होने शहर का कोई कोना नही छोड़ा था। बेहतरीन मिठाइयों से लेकर लजीज मुर्ग-मुसल्लम तक के बारे में उन्होने बताया कि कौन क्या-क्या बनाता हैं। जब मैंने रहमान बिरयानी वाले को बताया कि भाई आज तो तुम्हारी बिरयानी का जिक्र मनविंदर जी ने अपने कालम में किया है तो वो बन्दा पैसे लेने को तैयार न हुआ। क्योकि वो ये तो जानता था कि उसकी बिरयानी के बारे में लिखा गया है लेकिन किसने लिखा है ये उसको नही पता था।
आज जब पत्रकारिता के अर्थ बदल रहे है और नैतिकता की कही जगह नही बचती ऐसे मनविंदर का मनविंदर बने रहना आश्चर्यजनक लगता हैं। मेरठ में हुए 87 के दंगों को कौन नही जानता। तब भी आन द स्पाट, हालत की आंख में आंख डालकर ये महिला अपने फर्ज को तरजीह देने से पीछे नही हटी। जिस समय हाशिमपुरा में पीएसी के जवानों ने असहाय, बेगुनाह लोगों पर गोलीया चलाई तब भी घटना की कवरेज के लिये मनविंदर जी वहां मौजूद थी और एक पत्रकार से ज्यादा अपनी मानवीय सवेंदना की खातिर उस समय की स्थानीय विधायक मोहसिना किदवाई जी से इस मानवीय बर्बरता पर बात करने से भी पीछे नही हटी थी और आजकल आप दैनिक हिन्दूस्तान के लिये आर्मी और कैण्टोंमैंट को देखती हैं। इस पर भी आपका कालम खूब चलता हैं। जबकि पिछले दिनों रिमिक्स आपकी जिम्मेदारी था। बतौर रिमिक्स पर लिखते हुए आप बहुत सारी नयी प्रतिभाओं को कलम के जरिये सामने लायी। आज जब पत्रकारिता को एक स्टेटस सिम्बल की तरह से इस्तेमाल किया जाने लगा है तब ऐसे में वह इस बात से भी बचती है कि उनके नाम को किसी भी वजह से तरजीह मिले या आगे बढ़ाया जाए। इतनी सादगी और सवेंदना मुझे अभी तक किसी अन्य महिला पत्रकार में देखने को नही मिली है। आपकी इन्ही कारगुजारीयों को देखते हुए अभी हाल ही में आपको महिला गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया है। जो वास्तव में बेहद ही फर्क की बात है।
मनविन्दर जी ब्लागिंग के लिये बहुत पुराना चेहरा नही है लेकिन कम समय में ही उन्होने पुराने ब्लागों की अपेक्षा ज्यादा लोकप्रियता पाई हैं। ब्लाग बनाने को लेकर उनका आरम्भिक असंमजस साफ तौर पर दिखाई दिया। उन्होने अभी तक तीन ब्लाग बनाये है जिनमें से एक (वो कुछ पल) तो अब वह चलाती ही नही जबकि दूसरा (कुछ खास हस्तिया) भी खास एक्टिव नही है जबकि तीसरे ब्लाग (मेरे आस-पास) आज हिन्दी ब्लागों में अपनी एक खास जगह रखता है। अपनी ब्लागिंग के शुरूआती दिनों में वो एक पत्रकार की तरह से अपना ब्लाग चला रही थी जबकि उनके दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था। आप आरम्भिक पोस्टे कोरी पत्रकारिता से लबरेज फीचरों की तरह से रही जिनमें टिप्पणी के नाम पर भी एक या दो लोग ही दिखाई पड़ते थे। हां लेकिन रंजू भाटीया जी आपकी कद्रदान शुरू से ही रही हैं। मनविंदर जी ने धीरे-धीरे समझा कि उनको क्या लिखना है, और अब जाकर बिल्कुल क्लियर है कि वह क्या लिख रही है। अपने ब्लाग पर आजकल वह पत्रकारिता से दूर एक महिला होने के नाते। एक बेहद भावूक, सवेंदनशील और अदबनवाज तरीके से अपने मोर्च को सम्भाल रही हैं।
अमृता प्रीतम का असर आप पर बहुत ज्यादा तारी हैं। आपने अमृता को सिर्फ पढ़ा ही नही बल्कि महसूस किया है, और जिया हैं। ये किसी को चाहने की वो स्थिती होती है जब आप उस जैसे ही होने लगते है। अमृता अपने जमाने से आगे की औरत रही हैं, उन्होने जिन्दगी को अपनी शर्तो पर जिया हैं। बहुत बार मनविन्दर की नज्मों को पढ़ते हुए आपको लगेगा कि अरे क्या बात कि जा रही है और आप जैसे ही उस नज्म में उतरने की कोशिश करेगें कि भिम्बर जी बचकर साफ निकल जाती हैं। आप उनकी नज़्में और शब्दचित्रों को पढ़िये। वो अधूरी प्यास जगागर दूर निकल जाती है, लगता है जैसे अभी भी कुछ कहना बाकि है। मनविंदर जी कि नज़्में बहुत सारे अनसुलझे सवालों को छोड़कर जाती हैं, अब ये उनके उपर है कि वो सबकुछ साफ करें या छुपा जाए।
असल में कोई सच्ची नज़्म केवल शब्दों का जामा पहन लेती है, लेकिन बात दिल की होती है। और इंसान नही चाहता कि उसके दिल की बातों का कोई साझी हो, इसलिए आप शार्टकट मारकर फुर्र हो जाती हैं। आपने जितने शानदार तरीके से अपने कैरियर को परवान चढ़ाया है उतनी ही बेहतरीन ढ़ग से गृहस्थी को भी अंजाम दिया हैं। आप मनविंदर जी से बातें किजिए तो वो थोड़ा शर्माती है, सकोंच करती है, लेकिन जब बाते करती है, तब अदब की लहर दौड़ जाती है, जिसमें पंजाबी खुशबू का तड़का होता हैं और उर्दू की मिठास। यही तो मनविंदर भिम्बर हैं। वो अपने काम से प्यार करने वाली महिला है और इसके प्रति उनका सर्मपण भी है कि आज वह इस मुकाम तक पहुंची जब हम जैसे लोग उनकी बातें करते हैं। दिगम्बर नासवा जी ने एक बार आपके बारे में कहा था कि- ’’सूरज तक पहुँचने के लिए तो ख्यालों की उड़ान ही काफी है और आपके ख्यालों की उड़ान का तो कोई छोर नही’’ ये सच बात भी है।
आप विविध विषयों पर पुस्तकें लिखने का मन रखती हैं फिलहाल अमृता प्रीतम के जीवन और काम पर आपकी बहुप्रतिक्षित पुस्तक आ रही हैं। साहित्यिक लेखन के लिए जिस तकनीक और कौशल की जरूरत पड़ती है आप उसकी जानकार ही नही महारथी भी हैं।
यह ख्याल है या जिक्र भर तेरा
तुम कहते हो
मैं कहीं गया नहीं, यही हूं तेरे पास
आपके इसी तकनीकी कौशल को देखते हुए मशूहर सम्पादक और पत्रकार (ओमकार चौधरी जी को कहना ही पड़ा-अब तो थोड़ी।थोड़ी ईर्ष्या भी होने लगी है कि हम इतने अच्छे शब्द क्यों नहीं लिख पाते।) असल में मनविंदर भिम्बर का लेखन प्रतीकों और बिम्बों का लेखन हैं, जो रहस्य की सड़क से होकर आता है किसी रूहानी नगर की तलाश में। ऐसे में अगर बहुत अच्छा है कहकर हम चलते बने तो ये नाइंसाफी होगी, जो कलम जिस सम्मान की हकदार है, उसको उसका वो स्थान मिलना ही चाहिए। मनविंदर भिम्बर अगर दर्द की जुबान का बयां हैं तो हालत की अक्कासी का नक्शा भी जो खामोशी के साथ जिन्दगी के सफ्हों पर रोजमर्रा का तुर्जमा लिख रही है। शायद ऐसे ही लोग होते होगें जिनके लिये बहूत पहले बशीर बद्र ने कहा हैं-
आँसुओं से लिखी दिल की तहरीर को
फूल की पत्तियों से सजाते रहे
अतः मैं फिर कहूंगा कि ये तनकीद निगारी किसी जाति उद्देश्य या भावना से नही बल्कि उनके काम और लेखन पर एक विचार या राय भर है। अगली समीक्षात्मक पोस्ट मशहूर फिल्म निर्देशक महेश भट्ट की बेटी आलिया और शाहिन भट्ट (पहली बार इंटरनेट पर) पर पढ़ना ना भूले।
इरशाद