समीर लाल (उड़नतशतरी) ब्लॉग जगत के डेविड धवन है

पिछले कुछ महिनों से सिर्फ एक ही काम रह गया है कि हिन्दी ब्लॉग में कौन-कौन, कैसा-कैसा लिख रहे है। लगभग सभी हिन्दी ब्लॉगों को पढ़ा वहां टिपप्णीयां देखी बहुत सारी बातें सोची। नये-नये तरह के लोग नई-नई चीजें सामने लेकर आ रहे है। फुरसतीया से कौन वाकिफ न होगा, जीतू भाई, बैंगाणी बन्धू, नीलीमा जी, रविश, काकेश, शास्त्री जी, नीलेश, शमा और न जाने कितने नाम है जिन्हें गिनाउ लेकिन इन सब ब्लॉग लेखको में से जिस विचित्र ब्लॉग लेखक को मैने खोजा वह है अपने समीर लाल जी। यह ब्लॉग जगत की एक उपलब्धि है। आपके साहस को प्रणाम करना चाहिये। ऐवरेस्ट पर सौ बार चढ़ने-उतरने की कला से आप भली-भातीं परिचित है। भले ही वह काम यहां टिप्पणीयां देने का हो।
बात करते है डेविड धवन की। वह फिल्म उद्योग में वह एक जाना पहचाना नाम है, और वह निरर्थक फिल्में बनाने के माहिर है लेकिन उनकी उपस्थिति को नकारा नही जा सकता है। बहुत पहले किसी पत्रिका के लिये एक लेख लिखा था। ''फूहड़ हास्य का नया नाम डेविड धवन '' डेविड की फिल्में याद रखने के लायक नही होती है। वह बिना किसी कहानी के, बिना किसी तर्क के फिल्में को बेढगें तरिके से आगे बढ़ाते रहते है और लोग हसतें रहतें है। इसलिये फिल्म समीक्षक डेविड धवन की फिल्मों की समीक्षा लिखना भी व्यर्थ समझतें है। लेकिन एक बात बिल्कुल स्पष्ट है जब बड़े-बड़े धुरन्धरों की फिल्में नहीं चलती तब डेविड की कोई भी बेकार सी फिल्म भी अच्छा मुनाफा कमाकर ले जाती है। सब जानते है उनकी फिल्मों का कोई मतलब नही होता लेकिन फिर भी मनोंरजंन के लिये वह बेहतर विकल्प होती है।
अब समीर लाल जी की बात करते है। बहुत सारे ब्लॉग देखें हर किसी के लेख पर सिर्फ उसके हिसाब से टिप्पणीयां चिपकी हुई मिली लेकिन समीर भाई के यहा ये थोक के भाव में नजर आती है। वह किसी भी बेकार से लेख पर १०० से अधिक टिप्पणी पा जाते हैं। हालाकि हम सब जानते है कि लेखन की गुणवत्ता का टिप्पणी मिलने से कोई सरोकार नही होता लेकिन समीर भाई को कौन समझाये ये बात।
आने वाले वर्षो में जब ब्लॉगिंग का इतिहास लिखा जायेगा तब औरों के ब्लॉगों के बारे में बताया जायेगा लेकिन समीर जी के ब्लॉग से यहां कोई मतलब नही होगा बल्कि उनके जीवन चरित्र को इतिहास में दर्शाया जायेगा। मैं कहता हूं जब ब्लॉगगिंग का म्यूजियम बनेगा तब वहां समीर जी के कपड़े, जूते-चप्पलें, तेल-कंघा, साबून सब लोगो को दिखाया जायेगा। क्योकी इन सब के बिना ब्लॉगिंग का म्यूजियम अधूरा रह जायेगा यह अलग बात है कि वहा और लोगो के ब्लॉग के बारे में बातें हो। पर समीर जी का काम जूते-चप्पलें, तेल-कंघा, साबून से ही चलेगा कि वह क्या-क्या इस्तेमाल करते थे। मैने देखा बहुत सारे लोग उन्हे अपने ब्लॉग पर टिप्पणी करने से पहले चेतावनी देते है कि कृपया पहले पढ़ ले। लेकिन अपने समीर भाई तो बेगानी शादी में अब्दुल्ला दिवाने हुए जाते है। उन्हें इससे मतलब नही आप क्या लिखते है, वह टिप्पणी तो कर ही रहे हैं। तो भाई ब्लॉगिंग के विकास में अपने विलायती फुफा का योगदान अविस्मरणीय है।
सिर्फ समीर जी की फोटो दिखाकर ही लोगो को ब्लॉग लेखन के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है। उनकी टिप्पणीयां भी कमाल होती है वह आपको साधुवाद देते नजर आते है या बधाई। लेकिन लेख से टिप्पणी का सरोकार हो यह जरूरी नही। जब ब्लॉगिंग का मुझे क ख ग भी नही पता था मै तब से समीर भाई से परिचित हूं। हमारे शहर में फल बेचने वाला, खोमचा लगाने वाला, सफाई करने वाले सभी समीर जी से परिचित है। इंटरनेट के एक ठिकाने पर प्रथम बार मैने समीर जी को पाया था वह एक कवि को पटा रहे थे। अगर टिप्पणीयों का कोई महाकाव्य लिख सकता है तो आप सब जानते है वह कौन है। बहुत मनमौजी स्वभाव वाले व्यक्ति है (फोटो से तो यही लगता है) लेकिन बड़ा परिश्रम करते है हालांकि की उनपर इल्जाम लगता रहा है कि वह यह काम पैसे देकर अन्य लोगों से करा लेते है। पता नही क्या सच है यह बात ब्लॉग लेखन के विशेषज्ञ ही बेहतर बता सकते है। खैर समीर भाई की उपस्थिती को अनदेखा नही किया जा सकता है भले ही वह कितना और बेकार क्यों न लिख ले। वह अपने किसी लेख में अगर पूर्णविराम चिन्ह ही लगा दे तब भी उन्हें सौ पचास टिप्पणीयां मिल ही जायेगी। क्योकी उन्होने ब्लॉगिंग में जितना दोगे उतना पाओगे सिद्धांत को स्थापित जो किया है। अगर किसी नये ब्लॉगर को अपने लेखो पर टिप्पणीयां नही मिल रही है तो वह निराश न हो समीर भाई आते ही होगें।
मेरा अपना मानना है कि अभी तक हमने समीर भाई को सही से जाना ही नही है उनकी सामर्थ्य और शक्ति अभी देखी ही कहां है अगर सारे ब्लॉगर एकजूट होकर समीर भाई के खिलाफ टिप्पणी न करने का आन्दोलन छेड़ दे, तब आप सबको एक नये समीर लाल को देखने का मौका मिलेगा। वह किसी न किसी तरह आपसे टिप्पणी निकलवा ही लेगे। वह बखूबी जानते है कहां से क्या माल मिल सकता है।
समीर जी के बारें में बहुत सारे ब्लॉगर्स बात करते हैं। जिनमें से कुछ यहां दी जा रही हैं।
लेख से ही कट-पेस्ट करके समीरलालजी की तरह बहुत सही है लिखकर तारीफ़ करना जरा मुश्किल होता है। फ़ुरसतिया

यह सोचकर वे हलकान भी हो गये कल को ये भी वैसी ही हरकतें न करने लगे जैसे समीरलाल के साथ उनका चेला इस्माइली लगाते हुये करता है और वे बेचारे कुछ कह भी नहीं पाते।) फ़ुरसतिया

शिवकुमार मिश्र समीरलाल को टिप्पणी सम्राट कह रहे हैं,

समीर जी हर विवाद के समय झट कही जाकर छुप जाते हैं और उसके शांत होने के बाद शांति-शांति टाईप लहजे में दोनों ओर के भले बनते फिरते हैं- नीलीमा

एक और पोस्ट सिर्फ एक लाईन टेस्टिग.टेस्टिग नाम की पोस्ट लिखी। और इस एक लाईन की पोस्ट पर समीर जी की टिप्पणी थी। श्रीषीष
सभी प्रश्न पढ़ने जरुरी है। बिना पढे ;समीर भाई ध्यान दे जवाब देने पर अपने स्कोर के लिए आप स्वयं ही उत्तरदायी होगे। अनुप शुक्ला
तुम मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी करते होए बदले में मैं तुम्हारे ब्लॉग पर टिप्पणी करता हुँ इस टाइप का भांडपना और चारणपंथी बंद होनी चाहिए। शास्त्री जे.
तो थी महान लोगों की महान राय , महान समीर जी के बारे में लेकिन समीर भाई को भी सोचना चाहिये एक ब्लॉगर दोस्त कहते है कि महीने में कुछ सौ टिप्पणियों से किसी ब्लॉग का कोई भला नहीं होना है, ये बात कुछ मूढ़मगज लोगों को समझ में नहीं आती। आप मतलब का लिखिए या मतलब का माल परोसिए। बाकी ईश्वर यानी पाठकों पर छोड़ दीजिए। ब्लॉग टिप्पणियों में साधुवाद युग का अंत हो। आगे एक सज्जन यूं कहते है कि रातों-रात जान-पहचान लिये जाने के हड़बड़ाहट में टिप्पणी प्रसाद बांटने से अधिक जरूरी है, रचनात्मक और क्रियात्मक सहयोग।
यह समीर जी के प्रेम में लिखा गया लेख है न की किसी आलोचना या ईष्यावष आशा है समीर जी बुरा न मानेगें।

16 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत मेहनत की आपने हिन्‍दी ब्‍लाग जगत में आकर इस पोस्‍ट को लिखने से पहले......पर आप सही हो या गलत , ये मैं नहीं बतला सकती ?

Himanshu Pandey said...

काफ़ी परिश्रम से लिखा है आपने इस प्रविष्टि को . धन्यवाद. वैसे आपकी इस पोस्ट पर समीर जी फ़ौरी टिप्पणी नहीं दे पायेंगे क्योंकि, जैसा ताऊ ने बताया, वो अपने चिरंजीव की शादी में व्यस्त हैं.

समीर जी तो डेविड धवन हैं, पर यह भी तो बताओ कि इस ब्लोग जगत का ’प्रकाश झा’,’श्याम बेनेगल’, और जरा हट के ’राम गोपाल वर्मा’ कौन है ?

क्या किसी उभरते हुए कलाकार के बारे में बातें नहीं करेंगे ये ब्लोग जगत के लोग?

नटखट बच्चा said...

टी आर पी के चक्कर में आप कैसे कैसे लेख लिख रहे हो अंकल ?शास्त्री जी ब्लॉग जगत के उन बूढे लोगो में से एक है जो टिप्पणी कर कई लेख लिख चुके है ओर दूसरे बूढे कौन है ये बताने की जरुरत नही ,यहाँ सब टिप्पणी टिप्पणी करते मर जाते है ,आप भी

Udan Tashtari said...

सिर्फ पावति देने के लिए टिप्पणी कर रहा हूँ और हाँ, पढ़कर पूरा.

काफी मेहनत की है आपने. बहुत अच्छा विश्लेषण भी है मगर उद्देश्य समझ नहीं आ पाया.

म्यूजियम में कंघा शीशा ही लग जाये तो भी धन्य हुए ही समझो. :) वरना तो कौन पूछेगा.

आपने अहसास कराने का प्रयास किया, बहुत साधुवाद अपितु भी मैं अपने लेखन को लेकर कतई भ्रमित नहीं हूँ, अतः आप निश्चिंत रहें और अपनी उर्जा सार्थक लेखन में लगायें ताकि कुछ पढ़ने लायक बात उपलब्द्ध हो.

बहुत शुभकामनाऐं. आपके आदेशानुसार मुझे इसमें बुरा मानने जैसा कुछ मैटर ही नहीं मिल पाया, अतख बिल्कुल भी बुरा नहीं माना.

Arvind Mishra said...

भैया मैं तो उन्ही लोगों में से हूँ जो समीर जी को हिन्दी ब्लागिंग का शलाका पुरूष मानता हूँ -उनका नाम लेकर सहज ही किसी को आकर्षित किया जा सकताहै जैसा आपने किया है पर जब तक आपके ब्लॉग की अंतर्वस्तु बुद्धिगम्य नही होगी ये समीरलाल वाला चरा अगली बार नही चलेगा !

दिनेशराय द्विवेदी said...

श्रम तो लेखन से झलक ही रहा है। इस तरह के लेखन की शुरूआत तो हुई।

नटखट बच्चा said...

अब समझ में आया अंकल ,जो आप कर रहे है उसे जलन कहते है ,आँख खुली रखिये देखिये भाई भाई भाई कौन खेल रहा है ?कौन से अंकल दोस्त दोस्त खेल रहे है .आले ये आपके अंकल निकले

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

आप ने कहा - समात फर्माइये। हम ने कहा- इर्शाद! आपने हमें उडन तश्तरी में घुमाया। मज़ा आया। हमने कहा- मुकरर्र!!

Anonymous said...

हमें तो समीर लाल हिन्दी ब्लागिंग के डेविड धवन नहीं बल्कि राजकपूर लगते हैं क्योंकि:-

1। इनकी पोस्टें दिल को छू जाती है.... एकदम अन्दर तक
2। इनकी हर पोस्ट सुपर हिट.... दर्शकों/पाठकों की भीड़ आ जाती है
3। राजकपूर की तरह इन्हें भी अपने ऊपर कोई गुमान नहीं है

बाकी खाजकपूर भी कई हैं.... जलन के मारे खुजाते जो रहते हैं
कुछ मुकरी हैं.... लिख कर मुकर जाते हैं.... इस्माइली लगा डालते हैं.... ताकि चाहे जब मुकरा जा सके
कुछ बकरी भी है.... हमेशा मैं मैं मिमियाते रहते हैं

इनकी अनुपस्थिति को शिद्दत से महसूस किया जाता है.... देखिये अभी बस कुछ दिन ही नहीं लिखा.... इतनी सारी पोस्टें इनके नाम आ गईं.... कुछ तो बाकायदा ढेंचुआने लगे फिर ताऊ ने बताया कि शादी का मामला है तब लोगों को करार आया।

आपने बहुत मेहनत से लिखा है.... जितना आपको लिखकर मजा आया हमें भी इसे पढ़कर उतना ही मजा आया

Anonymous said...

itanee chamachaagiri, khandaanee lagate ho.

Unknown said...

आप भाईसाहब कमाल है ... पुरा एक पन्ना लिख दिया और मै बेवकूफ पढ़ भी गया ... और अब टिपण्णी भी लिख रहा हु ... समीर साहब का तो जीवन धन्य कर दिया आपने इतनी तवज्जो दे कर...
उपरवाला आपको और मुझे दोनों को थोडी सी दे....सदबुधि...

बवाल said...

(ईर्षाद)मियाँ नाम से
नाशाद मियाँ काम से
उड़ने को चले अर्श पर
टकराए तहे-बाम से

RAJ SINH said...

ab sameer lal chahe david dhavan hon ya mukree, keen fark painda hai ?

mere khayal se dimag rakhne kee bhee salah naheen dete.ho bhee to unhe padhte samay jarooree naheen lagta .jahan tak khujji-khujji khelte ek doosare ko khujlane ka mamla hai to pata to chale kise khujalee naheen hai ya kaun naheen khujla raha.samajhne valee baat ye hai ki kafee aise log hain .

mujhe to sameer lal kee 'udan tashtaree ' aanand ka udan khatola hee laga. baithiye ,ghoomiye, udiye aur bina paise ( tippanee ) diye gol ho jayiye ya pata lagate rahiye ye sameer lal kaun hai ya kis chidiya ka naam hai !

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

सोच लो इरशाद मिया अगर सामीर लाल ना होते आज किसे फूफा कहते ,पोस्ट बिल्कुल टी वी सीरियल जैसा लगा कहानी में [ लेख ] बड़े- बड़े ट्विस्ट आए शुरुआत में तो नही लगा था की आख़िर में उनके समर्थकों के जलाल से बचने के लिए चीं .. बोल कर समीर को विलाईती फूफा तक मान लोगो | लिखो धक्काड़ लिखो अब तो दल बदल कर आही गए हो सारे अपराध ..अरे नही पाप माफ़ राजनितिक दलों की तरह |

इरशाद अली said...

बताइयें राज सिंह जी कहते है- समीर जी को पढ़ते हुए दिमाग लगाने की जररूत नही पड़ती है जबकि वह भी उनसे बेहद प्रेम करते है। समीर जी एकमात्र ऐसे ब्लॉगर है जिन्हें ब्लागरों की तरफ से सौ खून भी माफ है, अब चाहे वह जो लिख दे। उपरोक्त टिप्पणीयों से उनके चाहने वालों का पता चलता है। निर्विरोध समीर जी ब्लॉगिंग का सर्वाधिक बहुमत अपने साथ लेकर चलते है। यदी ब्लॉगिंग की सीमाएं और क्षेत्रों का निर्धारण किया जाए तब समीर जी के बिना उनके अध्याय पूरे नहीं किये जा सकते है। समीर जी के लिये क्रास वोटिंग करने वाले न के बराबर है, ये उनकी अपनी शख्सियत का कमाल है, हां सब उनसे सहमत हो ये जरूरी नही, फिर भी वह सबके प्रिय है।

face the truth said...

Samir lal ke lekhan ka main bahut bada prashanshak nahin hoon. Par agar aap apne bare me koi mugalta pale hue hain to bhram ke jaal se bahar aaiye.Agar wo blog jagat ke david dhavan hain to aap koi shyam benegal nahin.
udharan ke taur par aapki rachna "अब तुम मुझे पसन्द नहीं" shabdon ka vyarth sanyojan matr hai.
Aapki soch vastav me budhi ho chuki hai varna aap yah nahin likhte ki "अभी तक के लगभग सवा पांच हजार हिन्दी ब्लॉगों में शमा एक अकेली ब्लॉगर है जिनको पढ़कर ब्लॉगिंग करने का मकसद समझा जा सकता है".
Khair aapke blogging karne ka maksad abhi tak samajh me nahin aaya.