वसीम की शाइरी दर्द की शाइरी है

शराफत और सादगी के साथ अदबनवाज़ी का अगर कोई नाम हो सकता है तो आप वसीम बरेलवी को जानिये। आज के दौर के मशहूरो-मारुफ शायरों में आपका शुमार होता है। आपकी शायरी ने सुनने और पढ़ने वालों को अहसासों की एक ऐसी सौगात दी है जिसकी जगह उनके दिलों में हैं। अपनी शायरी में जबान की सादगी और सोच में जिन्दगी के आम मसलों और सरोकारों से गजल को जोड़ कर वसीम साहब पेश किया है। आज हमारे दौर को जिस शायरी की जरूरत है, वसीम साहब ने अपने कलाम में उसी आवाज को बुलन्द किया हैं। आपके बारे में मशहूर शायर ‘फिराक’ गोरखपुरी ने कहा था कि- मेरा महबूब शाइर ‘वसीम बरेलवी’ है। मैं उससे और उसके कलाम दोनों से मुहब्बत करता हूं। ‘वसीम’ के अशआर से मालूम होता है कि ये महबूब की परस्तिश में भी मुब्तिला रह चुके हैं। वसीम के खयालात भौंचाल की कैफियत रखते हैं। वसीम के कलाम में आगही और शऊर की तहों का जायजा है और ऐसा शऊर और आगही कैफो-सुरूर का गुलदस्ता है। यह अकसर बातचीत से बुलन्द होकर काइनात का रंगीनियों और दिलकशियों से लुत्फ हासिल करते हैं। दरअसल शाइरी भी वही है, जो अपने वुजूद में हमें जिन्दगी की नजदीकतर चीजों का एहसास दिलाती है। ‘वसीम’ की शाइरी दर्द की शाइरी है।

आज उर्दू शाइरों में वसीम बरेलवीं का नाम आज बुलन्दीयों पर है। आपके बिना उर्दू मुशाइरों में एक अधुरापन सा रहता है। आपने अपनी शाइरी में नये-नये प्रतीको और बिम्बों के जरीये से मौजूदा हालात की परेशानीयों पर बहुत ही सहज और सरल ढंग से लिखा है। आपकी गजलों अनेक गायक गा चुके हैं और आपके अशआर लोगों को जबानी याद हैं।
मंसूर उस्मानी साहब ने एक बार वसीम साहब के बारे में कहा था कि- कभी-कभी ऐसा लगता है कि ये शायरी शब्द और एहसास का ही रिश्ता न होकर हमारे आँसुओं की एक लकीर है जो थोड़े-थोड़े अर्से के बाह हर युग में झिलमिला उठती है और इस झिलमिलाहट में जब-तब देखा गया है कि किसी बड़े शायर का चेहरा उभर आता है। इस चमक का नाम कभी फैज था, कभी फिराक था, कोई चेहरा दुष्यन्त के नाम से पहचाना गया, किसी को जिगर कहा गया। हमारे आज के दौर में आँसुओं की ये लकीर जहाँ दमकी है, वहीं वसीम बरेलवी का चेहरा उभरा है। इन्होंने अपने शायरी में जिस तरह दिल की धड़कन और दिमाग की करवटों को शब्दों के परिधान दिये गये हैं वह अपने आप में एक अनूठी मिसाल है। आँसू को दामन तक, जज्बातों को एहसास तक और ख्वाबों के ताबीर तक पहुँचाने में जितना वक्त लगता है उससे भी कम समय में वसीम साहब की गजलें वक्त के माथे की तहरीर बन जाती हैं।

पिछले दिनों आपको प्रथम फिराक गोरखपुरी अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया है। जिसमें 51,000 रुपए का नकद पुरस्कार और एक प्रशस्ती पत्र प्रदान किया। पुरस्कार ग्रहण करने के बाद वसीम साहब ने कहा कि हमारे समाज को पाश्चात्य संस्कृति से लगातार खतरा बना हुआ है। भविष्य की लड़ाइयां जमीन या इलाके के लिए नहीं, बल्कि सांस्कृतिक वर्चस्व के लिए लड़ी जाएंगी। गालिब, मीर और नजीर के शहर ने उन्हें महान सम्मान से नवाजा है। यह पुरस्कार मेरे लिए इम्तिहान हैं।
आजकल आप बरेलवी रूहेलखंड विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के प्रमुख हैं और वह कला संकाय के डीन भी रह चुके हैं। आपकी उर्दू शायरी पर आधा दर्जन से ज्यादा किताबे आ चूकी हैं और कई फिल्मों और टीवी धारवाहिकों में उनके गीत लिए गए हैं।

6 comments:

फ़िरदौस ख़ान said...

बेहद उम्दा पोस्ट है...

महेन्द्र मिश्र said...

बढ़िया जानकारी दी है वसीम साहब के बारे में . आभार ...

सहसपुरिया said...

WASIM SHAB KA KOI SAANI NAHI, ALLAH UNKO LAMBI UMAR DE,

विधुल्लता said...

उनकी शायरी की किताबों के नाम भी मिल जाते तोशुक्रिया वसीम जी से रूबरू हेतु...और उन्हें बधाई इस पुरुष्कार के लिए

شہروز said...

पिछले साल तक नियमित रहा , अब पुनः अंतर्जाल पर उपस्थित हुआ हूँ.लेकिन अफ़सोस आपकी तरफ आना न हुआ.जब आया तो बस जाने का मन न करता है.बहुत ही व्यवस्थित लेखन है आपका.खूब लिखते हैं.यही दुआ है, जोर-ए-कलम और ज्यादा! कभी मौक़ा मिले तो खाकसार के ठिकाने पर भी आयें, हौसला अफजाई होगी.

Pankaj Chauhan said...

very nice