गुरुओं को नमन

स्कूल और कॉलेज के दिनों में टीचर्स डे हमेशा एक जश्न की तरह रहा। पुष्प भेंट करना, रंगमंच पर परफ़ॉर्म करना और कॉलेज के आख़िरी दिनों में रंगमंच समिति का अध्यक्ष रहते हुए कार्यक्रमों का संचालन और संयोजन सीखना—ये सब उस दौर की यादें हैं। मगर उस वक़्त यह समझ नहीं आया कि असली गुरु तो जीवन की पाठशाला में बाद में मिलेंगे। वो गुरु जो किताबों से आगे बढ़कर मेरी शख़्सियत और मेरी सोच को आकार देंगे।


ऐसे चार रूहानी किरदार मेरी ज़िंदगी में आए, जिन्होंने मुझे ऊँची उड़ान के लिए पंख दिए।


सबसे पहले—मेरे सेंट जोज़फ कॉलेज के नागरिग शास्त्र के क्लास टीचर बी. बी. कुमार। उनकी क्लास में बैठना किसी सफ़र की तरह था। संतुलन, संयम और गहरी समझ—उनकी पहचान थी। उन्होंने सिखाया कि अभिव्यक्ति महज़ शब्दों का खेल नहीं, बल्कि एक गहराई से मोती निकालने की कला है। आज भी जब मैं कहीं बोलता हूँ, तो भीतर से वही सधे हुए जुमले निकलते हैं, जो मैंने उनसे अनजाने में सीखे।


दूसरे—मेरे पड़ोसी बालक राम प्रजापति। वो ऐसे इंसान थे जिनकी ज़िंदगी में अंधकार नाम का कोई शब्द ही नहीं था। हर हाल में रोशनी ढूँढ लेने का हुनर उनमें था। एक दिन के दरोगा बनकर उन्होंने ऐसा करिश्मा दिखाया कि पूरा इलाका दंग रह गया। उनकी सबसे बड़ी ताक़त यह थी कि वो इंसान की असली क़ाबिलियत को पहचान लेते थे। एक जुमले में किसी को जीत लेना—यह जादू उनसे ही सीखा।


तीसरे—दिल्ली आने के बाद मिले अब्दुल समी। उनकी शख़्सियत का अंदाज़ ही कुछ और था। उनकी नज़र और उनका संपर्क किसी भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री तक सीधा पहुँच सकता था। वो हमेशा कहते—"बड़े खेलो, तुम्हारे अंदर दम है।" मुझ पर जो यक़ीन उन्होंने किया, वह मेरे सफ़र का सबसे बड़ा हौसला बना। दिग्गजों को मोहरे की तरह इधर-उधर कर देने वाला यह करोड़ों का मालिक, अफ़सोस कि अपने ही घर के बोझ तले घुट कर चला गया। मगर उनका दिया हुआ विश्वास आज भी ज़िंदा है।


और आख़िर में—मेरे आत्मीय मार्गदर्शक, मेरे रूह के गुरु, हरीश शर्मा जी। पहली मुलाक़ात में ही उन्होंने एक प्रोड्यूसर से कहा—"इस पर पैसा लगाओ, यह बड़ी रेस का घोड़ा है।" उसी दिन से उन्होंने मुझे बॉलीवुड के दिग्गजों के बीच ला खड़ा किया। हर बार जब गहरी खाई के किनारे खड़ा होता, तो वो कहते—"कूद जा, गिरने तो नहीं दूँगा।" उनसे मैंने सीखा कि पहले बेहतर इंसान बनना ज़रूरी है, फिर कलाकार। अनुशासन और कला का रिश्ता क्या है—यह भी उन्हीं की संगत से जाना।

आज टीचर्स डे पर मैं इन चारों गुरुओं को दिल की गहराइयों से सच्चा सलाम पेश करता हूँ। यह वही लोग हैं जिन्होंने मेरी ज़िंदगी के कठिन रास्तों को आसान बनाया, और मुझे वह बनने में मदद की जो मैं आज हूँ। इन्हें मेरा हार्दिक शुक्रिया और सदियों तक रहने वाली दुआएँ।

— इरशाद दिल्लीवाला


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