अब मर्दानगी चिकने चेहरे नहीं, दाढ़ी में बसती है।

साउथ के नायकों ने जैसे ही परदे पर दाढ़ी में एंट्री मारी, चॉकलेटी हीरोइज़्म की चिता जल गई। चिकने-सपाट चेहरों का दौर बीत चुका है। केजीएफ के रॉकी भाई जब पहली बार स्क्रीन पर दहाड़े, तब से देशभर में दाढ़ी एक स्टेटमेंट बन गई। हर गली-मोहल्ले का नौजवान अब आईने में खुद को माचोमैन समझने लगा है — बस एक परफेक्ट दाढ़ी चाहिए।



बॉलीवुड भी भला पीछे क्यों रहता? यहां के हीरो भी अब मूंछों को ऐंठने और दाढ़ी में गम्भीरता टांगने लगे हैं। रणवीर हो या ऋतिक, सबने अपने फेस पर फजीहत छोड़ स्टबल और बियर्ड को जगह दी। मगर सवाल यही है — ये बदलाव स्टाइल का है या सिर्फ साउथ की कामयाबी को नकल करने की एक और मिसाल?


नया करने का साहस कम है, फॉर्मूलों की लकीर पीटना ज़्यादा आसान। यही बॉलीवुड की सबसे बड़ी विडंबना है। जबकि साउथ का सिनेमा रूट्स से जुड़कर ग्लोबल तक जा रहा है, हमारा मैनस्ट्रीम अभी भी बॉक्स ऑफिस के गणित में उलझा पड़ा है। ओरिजिनैलिटी हाशिए पर है, और लुक्स का ट्रेंड बस ट्रेलर का हिस्सा।

इरशाद दिल्लीवाला

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