अजीत राय नहीं रहे...
दिल में जैसे कुछ टूट गया हो। आंखें भीगी हैं, दिल रोने को बेकरार।
वो मेरे सबसे पसंदीदा फ़िल्म समीक्षक थे — फ़न की समझ रखने वाले, अदब के पारखी, और अंतरराष्ट्रीय सिनेमा पर हिंदी पट्टी की सबसे बारीक़ आवाज़।
कुछ रोज़ पहले ही बात हुई थी — इस बार दिल्ली में मुलाक़ात तय थी। अफ़सोस, अब वो सिर्फ़ एक अधूरा वादा बनकर रह गया।
उनकी लिखी हर समीक्षा दिल में उतरती थी, जैसे उन्होंने फिल्म नहीं देखी, उसे महसूस किया हो। उनकी कलम से निकला हर जुमला फिल्म की रूह को छू लेता था।
अब वो नज़रिया, वो महसूस करने वाली आंखें, हमेशा के लिए बंद हो गईं।
अक्षय कुमार ने उनकी आख़िरी किताब का लोकार्पण किया था।
वो दुनिया भर के फिल्म फेस्टिवल्स को अपनी कलम से जोड़ते थे — Cannes हो या Berlin, वो हर जगह मौजूद रहते और हिंदी पाठकों को एक पुल मुहैया कराते।
पत्रकारों की उस भीड़ में वो एक शख़्सियत थे — अलहदा, बेबाक़, और हमेशा सच्चे।
अब वो कलम रुक गई है...
लेकिन उनके अल्फ़ाज़ हमेशा हमारी यादों में ज़िंदा रहेंगे।
— इरशाद दिल्लीवाला
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