रविश कुमार के 600 दोस्त क्यों हैं?

जब हिन्दी ब्लॉगिंग शुरू की थी, तो बहुत सारे ब्लॉग पढ़ता था, जब इस पर पुस्तक लिखी तब उन सबका विवेचन भी करना पड़ा। ये तब की बात है जब हजार एक्टिव ब्लॉगर मुश्किल से मिल पा रहे थे। ब्लॉगिंग में ऐसे-ऐसे लोग पैदा हुए जिन्होने अपने दम पर, अपने लेखन के दम पर। अपनी पहचान को कायम किया। मैंने सिर्फ इन बेहतरीन लिखने वालों से प्रेरित होकर इन्ही के बारे में लिखना आरम्भ किया। जो अभी तक जारी हैं। आज भी जब देखता हुं अनुप जी, समीरभाई, रवि रतलामी, संजय बैंगाणी, अविनाश, नीलीमा, प्रत्यक्षा, घूघुती-बासुती और बहुत सारे नाम जिनके बिना हिन्दी ब्लॉगिंग की बातें ही अधूरी है। ये सब अपने अलग से लेखन की वजह से पहचाने गए। आज और भी नए लिखने वाले आ गए है जो सिद्ध कर रहे है कि वो भी अलग सा लिख कर हिन्दी ब्लॉगिंग की लोकप्रियता को बढ़ाकर अपनी पहचान को भी कायम करेगें।
मैं हमेशा ही ऐसा अलग सा लिखने वालों पर अलग सी टिप्पणी करने से भी नही चूकता, क्योकि ये बताना बेहद जरूरी है कि आप अलग लिख ही नही रहे बल्कि हिन्दी ब्लॉगिंग की लोकप्रियता में एक बड़ा योगदान दे रहे हैं। ब्लॉगिंग में अगर अच्छा लिखा जा रहा है तो खराब भी लिखा जा रहा है, वैसे इसको खराब कहना उचित ना होगा, क्योंकि ब्लागर अपनी समझ के हिसाब से बढ़िया ही लिखता है, लेकिन जब वह लिखने की हिंसात्मक प्रवृति पर उतारू हो जाता है तब उसका क्या किया जाए। वह घन्टे दो घन्टे में नयी-नयी पोस्टे देने लगता है। ऐसे ब्लॉगर ही 6 से 600 और 600 से 6000 हो जाते हैं। इन सब का पता आपको रविश कुमार के फेसबुक एकाउंट से चल सकता हैं। अब बात करते है रविश भाई साहब की।
रविश मेरे पसन्दीदा ब्लागरों में से है। कस्बा ने हिन्दी ब्लॉगिंग में अपनी एक खास जगह को बना लिया है। इसकी वजह शायद ये है कि वो काले को काला और सफेद को सफेद कहने से कभी नही कतराते, ये शायद अविनाश से उन्होने सीखा हो, इसलिये इन पर अल्पसंख्यों का हिमायती होने का आरोप भी लगता रहा है, लेकिन इन सब से परे रविश अपना बेहतरीन लिखने से पीछे नही हटते हैं। आज हम सबको रविश को मुबारकबाद देनी चाहिये, क्योंकि रविश के फेसबुक एकाउंट में 630 दोस्त बन गए है, ये 630 लोग कौन है, और ये रविश से क्या चाहते है। रविश इन 630 लोगों का मतलब समझते है लेकिन अंजान बने रहते है, क्योकि इसमें एक सुख है, और रविश इस सुख का मजा लेते है। ये मजा ऐसा ही है जैसे कोई घमण्डी जमीदार अपनी गरीब-गुरबा जनता के बीच उनके फैसले सुलझा रहा हो, कोई अन्नदाता, माईबाप लोगों को उनकी जीविका बांट रहा हो। तो रविश के पास ऐसा क्या है कि 630 लोग दौड़े-दौड़े अपना मित्रता निमंत्रण पत्र उठाये हुजूर के दरबार में पेश हुए जाते हो, और कहते हो- माईबाप ज्यादा तो कुछ ना बन पड़ा बस यही एक मित्रता प्रस्ताव है, स्वीकार कर लिजे, और राजा अपनी दयालूता का परिचय देता है, और सबको अपने फेसबुक एकाउंट में जगह देता हैं। मुनादी कर दी जाती है अब 600 लोग हमारे सखा हो गए हैं। दरबार लम्बा-चैड़ा है, ये 600 गरिब-गुरबा लोग आखिर अपने दयालू राजा से क्या चाहते हैं। दो बातें हैं जो राजा इनकी पूरी कर सकता हैं। पहली, वे चिल्ला-चिल्ला कर सबको बता सके- अरे एनडीटीवी वाला रविश अपना दोस्त हैं, अरे वही जो खबरे पढ़ता है- अपना पुराना यार हैं। दूसरी, रविश भाई मैं भी बहुत बढ़िया ब्लाग लिखता हूं, और आपका दोस्त भी हूं, मेरा जिक्र भी अपने कालम में करो ना।
अच्छा एक बात- क्या मुझे इन 600 लोगों ने आकर बताया कि वो रविश से क्या चाहते है या मुझे ऐसे सपने आते है। नहीं ये बात नही है। आज की तारीख में फेसबुक से ज्यादा चलने वाला आर्कुट साइट देखिये। रविश वहां भी है लेकिन वहां भाई के केवल 17 मित्र है, वहां मैत्री प्रस्ताव स्वीकारे नहीं जाते है। ये भेदभाव क्यों है, नही पता चला। वैसे ये ऐसा ही है जैसे कोई नेता उसी इलाके से खड़ा हो जहां से उसे जीतने की प्रबल सम्भावना दिखाये दें। ये तो पुछिये ही नही यहां रविश की चापलूसी करने वाले कितने स्क्रेप आपको दिखाये देगें। बस कुछ भी हो, अन्नदाता हमें पढ़ लो, बस एक बार पढ़ लो तो ये जीवन सफल हो जाए।
मेरी इस पोस्ट को जितने लोग पढ़ रहे है क्या उन्होने कभी रविश की किसी पोस्ट पर टिप्पणी की है?, क्या रविश ने आपकी किसी पोस्ट पर कभी टिप्पणी की है?, क्या आपने किसी और के ब्लॉग पर रविश की टिप्पणी देखी हैं? अरे ये कैसा राजा है जो सिर्फ लेना जानता हैं, किसी को देना नही। क्या इसको एक तरफा ब्लॉगिंग करना कहते है, ब्लॉगिंग में अगर प्रतियोगिताए आयोजित की गयी, तो उनमें एक प्रतियोगिता ये भी होनी चाहिये- तलाश किजिये रविश ने किस ब्लॉग पर और कब टिप्पणी की है, और जीतिये दो लोगों के लिये तीन दिन का फ्री सिंगापुर टूर। लोग कहेगें भले ही इनाम में एक बाॅल पैन दे दो, लेकिन प्रतियोगिता तो आसान करो।
खैर रविश हमेशा की तरह से मेरे प्रिय बने रहेगें। इस बात से रविश के लेखन का कोई मतलब नहीं है, मेरी ही तरह के सैंकड़ो ब्लॉगर उनको अपने पहले पेज पर लगाते हैं। वो हमेशा की तरह शानदार लिखते रहेगें। हिन्दी ब्लॉगिंग में गजब की अदबनवाजी है, आप जरा सी किसी को कोई टिप्पणी दो, वो तुरन्त आपको शुक्रिया का सन्देश भेज देता है, और अगर आप किसी को पंसन्द कर रहे हो, लगातार उसको बताते भी हो, अच्छे-बुरे विचारों में उसको भागीदार बनाते हो और वो इतनी बेरूखी दिखाये, तो ये खालीपन सालता हैं।

7 comments:

kaustubh said...

अपनी भी कुछ ऐसी ही है सोच
सटीक बात है इरशाद भाई । ब्लांगिंग पर शुरू हुए अखबारी कालमों ने जहां इसकी लोकप्रियता बढ़ाई है, वहीं एक अनपफेयर गलाकाट प्रतियोगिता में भी ब्लागरों को झोक दिया है खुद को ब्लागिंग की उल्लेखनीय हस्तियों में शामिल करने की । इसके लिए तरह-तरह के तंत्र भी बुने जाते हैं और आपसी गठजोड़ भी करते हैं भाई लोग । इसका अहसास अपने चंद दिनों के ब्लागिंग अनुभव से ही हो गया है । इस अंधी प्रतियोगिता और उसके जोड़ तोड़ से भी बुरी बात यह है कि इन काॅलमों के जरिए एक आदमी खुद को निर्णायक की भूमिका में बैठा लेता है और फैसले सुनाने लगता है । मजा यह है कि लोग सिर झुकाए खुद उसकी अदालत में पेशी को भी चले आते हैं कि हमारा भी फैसला कीजिए हुजूर ।
इरशाद आपकी बातों में वाकई एक गहराई और गंभीरता है । ‘रवीश इन छह सौ तीस चेहरों का मतलब समझते हैं, पर अनजान बने रहते हैं क्योंकि इसमें एक सुख है ’ बेहतरीन लगीं । शालीनता के साथ बहुत कुछ कह दिया है ।
कोलाहल से कौस्तुभ

RAJ SINH said...

इरशाद भाई ,

अब आपने लिखा है तो कुछ सोच साच के ही लिखा होगा , लेकिन थोडा परिचय भी कराते चलते . ये रवीश भाई कौन हैं ? और यार मेरे लिए तो कई तरह की ' भड़ास ' से ही फुर्सत नहीं है . ये भी कोई भड़ास हैं क्या ?

चलिए पता लगा लूँगा खुद ही . अभी तो किसिम किसिम की भड़ास से ही मोहलत नहीं मिली है .
और ये एन डी टी वी भी कोई खबर है क्या ?

लगता है बहुत जानना बाकी है .हमी कहीं अटक गए से हैं . :)

shama said...

Sach hai, Irshadji, itne saare dost to ban jaa sakte hain, kyonki in sites pe bina chehre dekhe parichay ko bhi "dost"hee kaha jaata hai, lekin dosti nibhana alag baat hai...doston ki fehrist lambi ho saktio hai, unmese kitnon ke saath rishta bana hua hai, ye kisko pata hota hai?

Jo dukh dard me khade hon, wahee dost, "orkut" ya "facebook"pe nahee...!
Jab hame sahareki zaroorat hoti hai, ham "facebook" pe jate hain?

Mujhe khud nahee pata ki, "facebook"pe meree jaisee ke 90 dost kab aur kaise ban gaye, kyonki maine aajtak kiseeko "invite" nahee kiya..!( aur mai behad antarmukhi wyakti hun)..
Aur gar poochho ki, mujhe uska "pass word" yaad hai to...nahi poochho to behtar!
Aapki anoothee, shailee khaamoshee ke saath bohot kuchh keh de rahee hai..!

shama said...

Irshadji, "aajtak yahantak" pe dee tippaneeke liye dhanyawad!
Zaahir hai, aapne mera :

http//lalitlekh.blogspot.com

http//shamasansmaran.blogspot.com

nahee padha!

"maatru Diwas" ," Maa,pyaree maa", tatha:

http//baagwaanee-thelightbyalonelypath.blogspot.com

is blogpe bhi, baagwaanee sansmaranatmak taurse maujood hai..kewal maaloomat nahee...!

http//kavitasbyshama.blogspot.com

http//dharohar-thelightbyalonelypath.blogspot.com

Ye chnd any blogs hain, jinme aapko ruchi ho!

Jaise maine bataya tha, kul 13 blogs vishayanusar alag kar diye hain.

Isse poorv shayad maine URL deneme gadbadee kar dee thee..!

"aajtak yahan tak" shuruse padha?

"Duvidha" jitnee lambi to nahee, lekin, haan, 5/6 yaa 6/7 kadiyon me bandhi yaaden hee hain, unme..!

डॉ .अनुराग said...

मुझे बड़ा असहज लगता है ये सब....

ravishndtv said...

इरशाद

मुझे लगता है फेसबुक पर मेरे लिखे को ठीक तरह से नहीं समझा। मैंने ज़मींदारी बताने के लिए नहीं लिखा था। मैं इंटरनेट की दुनिया में रिश्तों के बदलते पैमाने को समझने की कोशिश की है। मेरे छह सौ हैं या किसी के पचास भी होंगे। पचास भी कम बड़ी संख्या नहीं है। लेकिन फेसबुक से पहले क्या इतनी बड़ी संख्या में दोस्त होते थे? मैं खुद सामाजिक ज़िंदगी में दोस्ती को समझने की कोशिश करता रहा हूं। फेसबुक ने उसे नये सिरे से समझने का मौका दिया है। बिल्कुल ऐसा नहीं है कि मैं ज़मींदारी घमंड का परिचय दे रहा हूं। अगर ऐसा लगा है तो ज़रूर मेरे लिखे में कोई कमी रही होगी।

आपने ऑरकुट के १७ मित्रों की बात की है। मैं अब ऑरकुट पर नहीं जाता। कई महीने हो गए। अकाउंट बंद करना नहीं आता। अगर आप बता दें तो बहुत मेहरबानी होगी।

रही बात लेने देने की तो यह ठीक नहीं है। मैं भी दूसरों के ब्लॉग पर जाता हूं। टिप्पणी करता हूं। ब्लॉग वार्ता के लिए कम से कम शनिवार को पचीसों ब्लॉग पढ़ता हूं। मुझसे कोई निवेदन नहीं करता। जिन्होंने किया है उनका नहीं किया है। सारे ब्लाग पर जाकर टिप्पणी करना मुमकिन नहीं। हो सकता है आपके ब्लॉग पर कभी टिप्पणी न की हो और नहीं आया हो। लेकिन यह ब्लागिंग की कोई शर्त नहीं है। टिप्पणी से उत्साह बढ़ता है लेकिन सिर्फ टिप्पणी के लिए ही कोई लिखता होगा मुझे नहीं लगता। टिप्पणी केक के ऊपर टॉपिंग है। स्वाद बढ़ जाता है। कई ब्लॉग पर टिप्पणी करता रहा हूं। जिन पर किया है उन्हें मालूम होगा।

रही बात मेरी हर बात को टीवी से जुड़े होने से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। कई बार लिख भी चुका हूं। पत्रकार स्टार नहीं होता। आप अगर स्टार कहते हैं तो इसकी ज़िम्मेदारी आप ही लीजिए। सर पर चढ़ाने का काम दूसरे करते हैं और फिर पटक कर मज़ा भी लेते हैं। ठीक है कि टीवी पर दिखने के कारण कुछ लोग दोस्त होने का आवेदन भेज देते हैं। लेकिन उनकी अर्ज़ियों को मैं कभी भी किसी लाइसेंसी दफ्तर की तरह इस्तमाल नहीं करता।

बिना सोचे समझे सबमें हां करने के भी अपने जोखिम हैं। मैं किसी को नहीं जानता लेकिन कोई मुझे दोस्त कहे और ये चाहे किसी भी वजह से कहे तो क्या यह अच्छा नहीं है। हर बात की सज़ा इसलिए मुझे मत दीजिए कि मैं पहले आ गया इसलिए लोकप्रिय हो गया। मैं लोकप्रिय होने तो आया ही नहीं। न ही ये मेरी अभिलाषा है। हां इतना ज़रूर है कि ब्लागिंग के कारण मैं हिंदी में विविध विषयों पर बेहतरीन लेखकों के संपर्क में आ सका हूं।
इसका मुझे फायदा हुआ है।

मैं छह सौ तीस चेहरों को लेकर अनजान नहीं बना हुआ हूं। आप ही बताइये कि इसका मतलब क्या समझूं? यही कि मैं महान हो गया हूं। बहुत लोग हैं जिनके बहुत दोस्त हैं। मुझे कोई सुख नहीं है। बल्कि सुविधा है। मैं किसी से मिलता ही नहीं। माफी चाहूंगा इसके लिए। पत्रकारिता के पेशे में खबर के अलावा मैं आज तक दो चार लोगों को छोड़ किसी से मुलाकात नहीं की है। मैं किसी के घर नहीं जाता। न ही कोई घऱ आ पाता है। अब आप इस पर ही मुझे न घसीट लें। ये मेरा स्वाभाव है और एक तरह से कमज़ोरी भी। रात को दस बजे लौट कर आता हूं तो वक्त नहीं मिलता। अगले दिन की तैयारी करनी पड़ती है।

तो ठीक है कि इतने लोगों से संपर्क का एक ज़रिया मिला है। इसे समझना चाहिए। हमारे संबंध बदल रहे हैं। बस इसी को समझने के लिए लिखा है। अहंकार वजह नहीं है। इतना मुझ पर भरोसा कर लीजिए। यह भी मैं समझना चाहता हूं कि लोग मेरी चापलूसी क्यों करेंगे? टिप्पणी कर देने से क्या वो चापलूस हो जायेंगे? तब क्या आपने उन लोगों की टिप्पणियां नहीं पढ़ी हैं जिसमें जम कर मेरी खींचाई गई है। वो क्या सिर्फ चापलूस नहीं कहलाने के लिए लिखते हैं या वाकई वो कोई कारण देखते हैं जिसके कारण उन्हें मेरा लिखा ठीक नहीं लगता है। फिर वही लोग कई बार तारीफ करते हैं। तब क्या वो चापलूस हो जाते हैं। अगर चापलूस होते हैं तो क्या ये लोग मेरे ही संदर्भ में चापलूस होते हैं। अगर कोई आपके ब्लॉग पर आ जाए और तारीफ कर दे तो क्या वो चापलूस हो जाता है। पता नहीं। मैं दावे के साथ नहीं कह सकता। बिना मिले हम सिर्फ लिखे के आधार पर समझते रहेंगे तो इतना जोखिम तो उठाना ही होगा। इसलिए मैं कड़ी से कड़ी टिप्पणी पर उत्तेजित नहीं होता।

अभिषेक मिश्र said...

Lijiye Ravish Ji ki tippani to aa bhi gai. Jyada tippaniyan nahin karna nirash to karta hai, kintu mujhe nahi lagta ki Ravish Ji ki 'Blog Charcha' mein blogs ki gunvatta se samjhauta kiya jata ho. Mere hi kuch parichit blougers ki ismein charcha ki gai hai, jo khud hi apna jyada nagada nahin pitate.